हालांकि, चोटी में चढ़ते समय चित्रसेन के पैर में चोट भी लग गई और उसका चलना मुश्किल हो गया। इसके बावजूद उसने हार नहीं मानी और माउंट एलब्रुस चोटी का चढ़कर छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित किया।
अब चौथे चोटी में चढऩे की करेंगे तैयारी
चित्रसेन में माउंट एलब्रुस चोटी चढ़कर तीसरे महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी चढऩे का गौरव हासिल कर लिया। अब वे सात में से चौथे महाद्वीप की चोटी में चढऩे का सफर शुरू करेंगे। चित्रसेन ने माउंट एलब्रुस चढ़ाई 17 अगस्त को शुरू की थी।
27 साल के चित्रसेन साहू मूलरूप से अम्बिकापुर के रहने वाले हैं। उनकी पढ़ाई-लिखाई बालोद जिले के बेलौदी गांव में हुई। 2014 में उन्होंने बिलासपुर के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। सात साल पहले एक ट्रेन दुर्घटना में अपना दोनों पैर खो चुके चित्रसेन साहू ने जिंदगी के आगे घुटने नहीं टेके। पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा की कहानी पढ़कर उनका हौसला बढ़ा और वे अपनी शर्तों पर जिंदगी जीते रहें। चित्रसेन ( Chitrasen Sahu Europe’s highest peak Mount Elbrus ) छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड में इंजीनियर है। इस युवा इंजीनियर और भारतीय ब्लेड रनर चित्रसेन साहू को ‘हाफ ह्यूमन रोबो’ के नाम से भी जाना जाता है।
वे किलिमंजारो की फतह की तैयारी पिछले डेढ़ साल की इसकी तैयारियों कर रहे थे। उन्होंने बताया कि ‘अफ्रीका के तंजानिया किलिमंजारो में जाने के लिए धीरे-धीरे तैयारियां की और छत्तीसगढ़ के आसपास ट्रैक ट्रेनिंग की। दस दिन हिमाचल में रहकर ट्रेनिंग ली और 72 किलो मीटर ट्रैक कंप्लीट किया।’ वे 16 सितंबर को दक्षिण अफ्रीका पहुंचें और उन्होंने 19 सितंबर को चढ़ाई शुरू की और 26 सिंतबर को किलिमंजारों की चोटी पर पहुंचकर देश का तिरंगा लहराया। चित्रसेन साहू को हाल ही में छत्तीसगढ़ शासन और मोर रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने प्लास्टिक फ्री अभियान का ब्रांड एंबेसडर भी बनाया है।
इसलिए जब चित्रसेन किलिमंजारो की चोटी पर पहुंचे तो उन्होंने लोगों को प्लास्टिक फ्री अभियान का संदेश भी दिया। अपनी इस सफलता पर उन्होंने कहा कि ‘चढ़ाई के दौरान एक वक्त तो हिम्मत टूटने लगी थी। फिर मन पर काबू पाया और लक्ष्य की तरफ बढ़ चला। मैंने इस मिशन का नाम ‘पैरों पर खड़े हैं’ नाम दिया था। मेरा मानना है कि जो व्यक्ति जन्म से या किसी हादसे में शरीर का कोई अंग गंवा दे तो उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। शरीर के किसी अंग का न होना कोई शर्म की बात नहीं, न ही ये हमारी सफलता के आड़े आता है। हम किसी से कम नहीं, न ही अलग हैं, तो बर्ताव में फर्क क्यों करना? हमें दया नहीं, आप सब के साथ एक समान जिंदगी जीने का हक चाहिए।’ उन्होंने कहा कि वे समाज मे दिव्यांगजनों के लिए जो दया भाव है उसे दूर करने के लिए यह कर रहे हैं ताकि लोग समान दृष्टिकोण से देखें।