कुँरा गांव ने भारत में हुए घृणा और हिंसा की पुरानी सामूहिक घटनाओं पर आधारित साम्प्रदायिक सद्भावना का सन्देश देते हुए “कारवां-ए-मोहब्बत” नाम का एक नया वीडियो जारी किया है।वीडियो के मुख्य किरदार अमीनुल्लाह खान है और वह कपडे की दूकान चलाते हैं ।
सामाजिक सद्भावना की विरासत का उदाहरण है छत्तीसगढ़ के एक गाँव का मुस्लिम रामलीला कलाकार
ऋषि वालिया का ये शेर छत्तीसगढ़ के कुँरा गाँव के लोगों पर सटीक बैठता है।जब देश में चारो तरफ जाति धर्म को लेकर एक दूसरे के मन में जहर के बीज पनप रहे हों।जब धर्म,जाति और समाज के बीच के सद्भावना का पुल टूट रहा हो तो ऐसे में छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के “कुँरा” जैसे गाँव की कहानी राहत की तरह आती है।और इस कहानी में अमीनुल्लाह खान जैसे किरदार टूट रहे पुल को फिर से जोड़ते हैं।
कुँरा गाँव ने भारत में हुए घृणा और हिंसा की पुरानी सामूहिक घटनाओं पर आधारित साम्प्रदायिक सद्भावना का सन्देश देते हुए “कारवां-ए-मोहब्बत” नाम का एक नया वीडियो यूट्यूब पर जारी किया है।वीडियो के मुख्य किरदार अमीनुल्लाह खान है और वह कपडे की दूकान चलाते हैं और सालों से गाँव की रामलीला में विभिन्न किरदार निभा रहे हैं।
“कारवां-ए-मोहब्बत” वीडियो के अनुसार कुँरा में 1935 में उनके दादा नियामतुल्ला खान ने रामलीला की शुरुआत की थी।फिलहाल रावण का किरदार निभाने वाले अमीनुल्लाह खान इससे पहले विष्णु,दशरथ ,परशुराम,बाली और मेघनाथ की भूमिका निभा चुके हैं।
उनकी पत्नी ज़ाहिदा खान उनका समर्थन करते हुए कहती हैं जब भी आवश्यकता होती है मैं उन्हें दूकान बंद कर रिहर्सल पर ध्यान देने के लिए कहती हूं।अमीनुल्लाह खान अपने गाँव के सामजिक सद्भाव के बारे में बताते हुए कहते हैं की “मैं सौभाग्यशाली था कि कुंरा जैसे गाँव में पैदा हुआ, जहाँ लोग एक-दूसरे को समझते हैं और एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करते हैं।
गाँव के अन्य लोग भी बताते हैं की गाँव के सभी सदस्य एक परिवार की तरह रहते हैं और एक दूसरे के त्योहारों में शरीक़ होते हैं चाहें वो किसी भी धर्म या जाती से हों।कुँरा गाँव में एक और दिलचस्प चीज आपको प्रभावित करती है और वो है गाँव के मंदिर और मस्जिद की दीवारों का एक दूसरे से जुड़ा होना।यह जुड़ाव चाहें मंदिर मस्जिद का हो या दो धर्म के लोगों का, कुँरा गाँव की विशेष बनाता है।