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नाक ल बचाय के किसम-किसम के जतन

locationरायपुरPublished: May 29, 2023 04:22:56 pm

Submitted by:

Gulal Verma

नाक के संग पीरा अउ सरम दूनों के जुड़ाव रहिथे। चाल ल लेके सीधा चले म नाक्केच ह आगू आ जथे। बल्किन वोकर आजू-बाजू म पसरे दूठिन आंखीं के भरोसे ए देह ह सीधा चलथे, फेर ऐला कोनो कुछु नइ काहय। नाक होथेच ऊंच चीज। दरदनाक, सरमनाक से लेके, खतरनाकमन के हालत ल बताय खातिर जतेक मददगार नाक होथे, कोनो अउ दूसर अंग नइ होवय।

नाक ल बचाय के किसम-किसम के जतन

नाक ल बचाय के किसम-किसम के जतन

मितान! अइसे तो मोर दिमाग के घोड़ी ह ऐती-वोती, जेती पाथे तेती दउड़त रहिथे। फेर, पाछू कतकोन दिन ले ए बात म दिमाग के घोड़ी ह अटक गे हे के ‘हमर जिनगी के सब्बो काम-बुता ह ए देह के जम्मो जिनिस के मिलजुल के काम करे से होथे, त सबो इज्जत, मान-मरयादा अउ सरम के ठेका सिरिफ नाक भर के काबर होथे?’ नाक ह तो सबले नाजुक (संवेदनसील) होथे। थोरको मौसम बदले बर धरिस तहां ले सुड़-सुड़ करे बर धर लेथे। ओरवाती कस धार बोहाय लगथे। अतको नइ, ऐकर तो अब्बड़ रुआब हे। देह ह भले ठेगना होवय, फेर नाक ऊंचेच होय बर चाही।
सिरतोन! नाक के संग पीरा अउ सरम दूनों के जुड़ाव रहिथे। चाल ल लेके सीधा चले म नाक्केच ह आगू आ जथे। बल्किन वोकर आजू-बाजू म पसरे दूठिन आंखीं के भरोसे ए देह ह सीधा चलथे, फेर ऐला कोनो कुछु नइ काहय। नाक होथेच ऊंच चीज। दरदनाक, सरमनाक से लेके, खतरनाक मन के हालत ल बताय खातिर जतेक मददगार नाक होथे, कोनो अउ दूसर अंग नइ होवय।
मितान! नाक झन कटय, ऐकर धियान साधारन मनखे भले नइ रखय, फेर रसूखदार लोगनमन ल बहुत रहिथे। पोथी-पुरानमन म घलो अइसन बात मौजूद हावय कि बहिनी के नाक कटे के सेती पराकरमी भाई के लहू खौल उठे रिहिस। ऐकर उल्टा मोर एक बे-हया संगवारी बर वोकर महतारी के मानना रिहिस कि ‘नकटा के नाक कटे, बित्ता भर रोज बढ़े।’ आजकल हमर देस म चुनई म अपन-अपन ‘नाक’ ल बचाय म लगे रहिथें।
सिरतोन! मनखे के चेहरा के बीच म बने ए अंग ल मुहावरामन म घलो जतका भाव मिले हे, वोतका अउ कोनो दूसर अंकमन ल नइ मिले हे। ‘गाल फुलाय’ म वो बात नइये, जउन ‘नाक फुलाय’ म हे। नाक म दम करई, नाकों चने चबाना, नाक के बाल होना, नाक नीचे होना, नाक ऊंची होना आदि-आदि। पता नइ, कइसे मुहावरा बनाय दे गिस नाक ऊपर माछी बइठइया। माछी ह तो देह के वो अंग म घलो बइठ सकत हे, जेमा गुड़ के चिपचिपाहट हो। परानी बिग्यान के नियम मुताबिक सांस ल चलाय खातिर नाक के बाहरी समरथन जरूरी होथे। ऐकर बाद घलो बिना नाक के मेचकी ल घलो ‘सरदी जुखाम’ होथे। थोकिन सोचव, यदि नाक नइ होतिस त लोगनमन अनुलोम-विलोम कइसे करतिन अउ कोन दरवाजा ले छींक ह बाहिर निकलतिस।
आज के जमाना ह अजब-गजब हे। ‘बदमानी म घलो नाव होथे’ कहइया-मनइयामन के घलो कमी नइये। घर-परिवार, समाज म नाक कटा जथे, तभो ले मुड़ ले ऊंच करके रेंगथे। सुवारथ अउ लालच म लाज-सरम ल बेच देथें। बाप बड़े न भइया, सबसे बड़े रुपइया के दौर म ‘नाक’ के दू कउड़ी के मोल नइ रहिगे हे, त अउ का-कहिबे।
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