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रोज लूटत हावय नारी-परानी के अस्मत

locationरायपुरPublished: Sep 26, 2022 04:36:53 pm

Submitted by:

Gulal Verma

कहे बर तो नारी ह घर के मालकिन होथे। फेर, हुकुम चलथे आदमी के। वोकर पूछे बिना आड़ी के काड़ी नइ कर सकंय। जेन बेटा ल जनम देथे उही ह बड़े बाढ़थे तहां ले आंखी देखाथे। सिक्छित नारी के घलो सोसन होवत हे। इस्कूल, कालेज, आफिस कोनो जगा बुरी नजर वालेमन ले नइ बांचत हें।

रोज लूटत हावय नारी-परानी के अस्मत
रोज लूटत हावय नारी-परानी के अस्मत
धरम गरंथ म पुरुस अउ नारी ल गाड़ी के दू चक्का कहे गे हावय। जेहा मिलजुल के घर-परिवार अउ समाज ल सरग कस बनाथें। फेर, अब्बड़ दुख के बात आय के जुग-जुग ले नारीमन से जउन भेदभाव चलत आवत हे, तेन ह आज के आधुनिक जुग म घलो नइ कमतियावत हे। का कोनो माइलोगिन के बिना कोनो घर-समाज के कल्पना करे जाय सकत हे? सोचे, समझे अउ गुने के बात आय के जेन माइलोगन ले घर, परवार, समाज, देस अउ दुनिया ह टिके हावय, वोकरे सबले जादा उपेक्छा, अपमान, बेइज्जती, सोसन काबर होथे?
पुरुस जात कस ढोंगी अउ आडंबरी ए दुनिया म कोनो नइये। एक कोती तो बड़ जोर-सोर से कहिथें -‘नारी के पूजा होथे उहां देवतामन रहिथें।’ फेर, दूसर कोती सबले जादा अपराध तो माइलोगनमन के उप्पर करथेें। नारी ल सक्ति, गियान अउ धन-दउलत के देबी मान के कतकोन पूजा-पाठ कर लंय, फेर बेटा-बेटी म भेद करे, बेटी ल बोझा समझ के कोख म मारे, दहेज बर बहू ल दुख-पीरा देय, नारी से छेड़छाड़, अनाचार अतियार करे बर नइ छोड़त हें। अकेल्ला माइलोगिन बर तो समाज ह गिधवा कस आंखीं गड़ाय रहिथें। ‘दरिंदा मनखेमन’ मान ले हें के नारी के सोसन करई ‘मनखे जात’ के जनमजात अधिकार हे अउ दु:ख-पीरा सहई ‘नारी’ के नसीब हे। आज नारीमन पुरुस के खांध ले खांध मिला के चलत हें। सबो दिसा म नारीमन आगू बढ़त हें। हर आदमी के सफलता के पाछू म एक माइलोगिन के हाथ होथे।’ वोहा कोनो रूप म हो सकथे। दाई, सुवारी, परेमिका, बहिनी, बहू या फेर बेटी। फेर, उही नारी ल पांंव के भंदई समझथें।
कहे बर तो नारी ह घर के मालकिन होथे। फेर, हुकुम चलथे आदमी के। वोकर पूछे बिना आड़ी के काड़ी नइ कर सकंय। जेन बेटा ल जनम देथे, उही ह बड़े बाढ़थे तहां ले आंखी देखाथे। सिक्छित नारी के घलो सोसन होवत हे। इस्कूल, कालेज, आफिस कोनो जगा बुरी नजर वालेमन ले नइ बांचत हें। सबो जगा माइलोगिनमन उप्पर जुलुम होवत हे। फेर, जुलमीमन ल सबक सिखाय, सजा देवाय बर कोनो आगू नइ आवय। सबो के बस एक्केच सोच रहिथे। हमन ल का करे बर हे। हमर संग थोरे होवत हे। गुंडा-बदमास के मुंह कोन लगही? फोकट के दुसमनी कोन मोल लेही? थाना-कचहरी के झंझट म कोन परही? फेर, समे आ गे हे के नजरिया अउ सोच ल बदले जाय। दूसर उप्पर होवत अतियार ल देख के अवाज उठाय जाय, मदद करे जाय।
अनाचार, छेडख़ानी, अतियाचार तो नारी संग होथे अउ उहीच ल घर-परवार, समाज म बदनाम करे जाथे। वोकरे चरित उप्पर अंगरी उठाथें। अनाचारी, दुराचारीमन समाज म मुड़ उठाके चलथें, फेर भुगतइया नारी के घर ले निकलई मुसकुल हो जथे। वाह रेे! दुनिया अउ तोर दुनियादारी। वाह रे! समाज अउ तोर समझदारी। वाह रे! अपन आप ल महान समझया मनखे अउ तोर छोटकुन सोच।
जब घर-परवार म नारी के इज्जत नइ होवत हे। नारी ह घलो नारी के बइरी बने हे। दरिंदामन ल फांसी म लटकाय के मांग होथे, फेर कोनो ल फांसी म नइ लटकावत हें, त अउ का-कहिबे।
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