ऐसी मशीन किसी भी एम्स में मौजूद नहीं है। बताया जाता है कि लीनियर एक्सीलेटर मशीन लगने से कैंसर के रोगियों को उपचार के दौरान होने वाली सिकाई में काफी राहत मिलेगी। रेडियोथैरेपी के दौरान मरीजों की होने वाली सिकाई में इस तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। इसके तहत जब सिकाई में रेडियो तरंगें कैंसर प्रभावित क्षेत्र में छोड़ी जाती है तो मरीज की त्वचा बर्न हो जाती है। इस तकनीक की मदद से उन किरणों पर अधिक फोकस किया जा सकेगा और मरीज की त्वचा भी नहीं जलेगी।
न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग में पदस्थ स्वास्थ्य कर्मचारियों के अनुसार यदि कैंसर मरीज ठीक हो जाता है और डिस्चार्ज होने लगेगा तो उसकी दोबारा लीनियर एक्सीलेटर मशीन से जांच की जाएगी कि सूक्ष्म मात्रा में भी कैंसर बचा तो नहीं है। यह मशीन सूक्ष्म कंैसर की भी पता लगा लेगी।
आंबेडकर अस्पताल में लगती है लाइन
एम्स में लिनियर एक्सीलेटर मशीन नहीं होने से लोगों की संख्या कम रहती है। वहीं, आंबेडकर अस्पताल के इंदिरा गांधी कैंसर संस्थान में करीब 400 से 500 मरीज प्रतिदिन ओपीडी में आते हैं तथा 3 से 4 लोगों की सर्जरी होती है। लिनियर एक्सीलेटर मशीन से करीब 35 से 40 मरीजों का रोजाना उपचार होता है। प्रदेशभर से पहुंचे मरीजों तथा 100 बिस्तर होने की वजह से यहां पर मरीजों को काफी लंबी वेटिंग मिलती है। एम्स में भी लीनियर मशीन के लगने से उम्मीद जताई जा रही है कि आंबेडकर अस्पताल पर मरीजों का कुछ दबाव कम हो जाएगा।
एम्स के न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ. करन बिप्रे ने बताया कि एम्स में लगाई गई लिनियर एक्सीलेटर एशिया की सबसे हाई टेक्नोलॉजी मशीन है। मरीजों को अब इधर-उधर जाने की जरूरत नहीं होगी। यहां पर कैंसर मरीजों का आयुष्मान योजना के तहत निशुल्क उपचार होगा।
रायपुर एम्स के डिप्टी डायरेक्टर निरेश शर्मा ने बताया कि एम्स में लगाई गई लिनियर एक्सीलेटर मशीन अभी तक सबसे हाई टेक्नोलॉजीयुक्त है। प्रबंधन की कोशिश है कि यहां पर कैंसर मरीजों का समुचित इलाज हो।