रायपुर

जिंदा रहने के लिए यहां के लोग खाते हैं कंदमूल फल, पीते हैं नदी का पानी, बिजली क्या होती है नहीं जानते

एक-एक कर आजादी के 70 वर्ष तो गुजर गए, लेकिन इन्हें अभी तक आजादी नसीब नहीं हुई है

रायपुरJun 06, 2018 / 08:29 pm

चंदू निर्मलकर

जिंदा रहने के लिए यहां के लोग खाते हैं कंदमूल फल, पीते हैं नदी का पानी, बिजली क्या होती है नहीं जानते

रायपुर. छत्तीसगढ़ सरकार भले ही विकास के करोड़ों दावे कर लें लेकिन गरियाबंद जिले में एक गांव एेसा भी है जहां के लोग अभी भी एक अदद आजादी की मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। एक-एक कर आजादी के 70 वर्ष तो गुजर गए, लेकिन इन्हें अभी तक आजादी नसीब नहीं हुई है। यहां के ग्रामीण जिंदा रहने के लिए कंदमूल फल खाते हैं। वहीं, नदी नाले झरिया का गंदा पानी इनकी प्यास बुझाता हैं। रात का अंधेरा लकड़ी के अलाव जलाकर दूर करते हैं। विकास दिखाने वाली सरकार को कौन बताए कि छत्तीसगढ़ के ग्रामीणों की दशा क्या है। सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य इनके लिए तो एक स्वप्न बनकर रह गया है।
सरकार एक ओर विकास करने की बात कह रही हैं। दूसरी ओर मैनपुर अंचल के ग्रामीण को मूलभूत सुविधाएं तो दूर दो बूंद साफ पानी भी नसीब नहीं हो रहा है। गरियाबंद जिले के आदिवासी विकासखंड मैनपुर क्षेत्र के बिहड़ पहाड़ों के उपर बसे ऐसे कई गांव है। जहां विकास की किरण अब तक नहीं पहुंच पाई है।
 

नहीं है सड़क
मैनपुर से 18 किमी दूर कुल्हाड़ीघाट और इसके आश्रित ग्राम कुर्वापानी जो 26-27 किमी दूर ऊंचे पहाड़ी के उपर हजारों मीटर की ऊंचाई पर बसा है। कुर्वापानी ग्राम की जनसंख्या लगभग 260 के आसपास है। यहां विशेष पिछड़ी कमार जनजाति के लोग निवास करते हैं। लेकिन इस गांव में पहुंचने के लिए अब तक सड़क का निर्माण नहीं हो पाया है।

 

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गंदा पानी से बुझाते हैं प्यास
कहते है किसी भी गांव के विकास में सड़क आवागमन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जब इस गांव मे पहुंचने के लिए सड़क ही नहीं है तो यहां अन्य विकास की बात करना कोरी कल्पना मात्र है। गांव में आज भी शासन द्वारा एक भी हैण्डपंप नहीं लगाया गया है। ग्रामीण नदीं नाले झरिया का गंदा पानी पीने मजबूर होते हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली आदि मूलभूत सुविधा नाम की कोई चीज ही नहीं है। शासन की महत्वपूर्ण योजनाओं का लाभ से यहां के लोग वंचित हंै।

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नहीं आया कोई अधिकारी
ग्रामीण लक्षीन्दर कमार, बुधराम, लालधर सोरी ने बताया आज तक इस गांव में शासन के कोई भी बड़े अधिकारी नहीं पहुंचे हैं। न ही कभी सांसद विधायक या बड़े नेता जबकि हर पांच वर्ष में यहां के लोग 26 किमी पैदल चलकर मतदान करने कुल्हाड़ीघाट पहुंचते हैं। ग्रामीण मतदान कर अपनी पूरी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं। लेकिन क्या उनके कीमती वोटों से चुनाव जीतकर विकास का दावा करने वाले चुनाव के बाद इन्हें क्यों भूल जाते हैं। इन प्रश्नों का जवाब यहां के ग्रामीण वर्षों से मांग रहे हंै।

रात का अंधेरा लकड़ी के अलाव से होता है दूर
यहां बिजली व्यवस्था नहीं है। रात के घनघोर अंधेरे से लडऩे लकड़ी का अलाव सहारा है। तो मिट्टी तेल चावल राशन के लिए पैदल 26 किमी दूरी तय करना इनकी बद नसीबी कहे तो कम नहीं है। ग्राम पंचायत कुल्हाड़ीघाट के सरपंच बनसिंह सोरी ने बताया कि कुर्वापानी तक सड़क निर्माण व अन्य मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने कई बार शासन स्तर पर मांग पत्र भेजा जा चुके हैं। लेकिन अबतक समस्या का समाधान नहीं हुआ।

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