मावली माता के साथ देवी दंतेश्वरी की डोली नवरात्र की अष्टमी पर यहां से रवाना होती है, उसके बाद जगदलपुर पहुंचने पर मावली परघाव की रस्म में भव्य स्वागत किया जाता है। देवी का छत्र काष्ठ रथ पर रथारूढ़ कर परिक्रमा कराई जाती है। इसके बाद माता दंतेश्वरी व माता मावली बस्तर महाराजा के साथ नवाखाई की रस्म में शामिल होकर दंतेवाड़ा लौटती हैं।
एक दिन पहले होता है पूजन : दंतेश्वरी मंदिर में रक्षा बंधन हो या पोला पिठौरा, नवाखानी की रस्म, जन सामान्य में प्रचलित तिथि से एक दिन पहले यहां पर पूजा अर्चना होती है, ताकि देवी को अर्पण के बाद ही अगले दिन आम जन पर्व मना सकें।
देवी को सलामी देने की प्रथा रिसासत काल से
सबसे खास बात यह है कि देवी दंतेश्वरी की डोली जब भी मंदिर से बाहर निकलती है। 1-4 के सशस्त्र गार्ड उनके सम्मान में सलामी देते हैं और हर्ष फायर करते हैं। यह प्रक्रिया रास्ते भर जगह-जगह अपनाई जाती है। मंदिर में प्रवेश से पहले भी द्वार पर हर्ष फायर कर सलामी देने की परंपरा है। संभवत पूरे छत्तीसगढ़ में यह इकलौती ऐसी देवी हैं, जिन्हें हर्ष फायर से पुलिस के जवान सलामी देते हैं। रियासत काल से यह परंपरा चली आ रही है, जिसका निर्वहन जारी है। ऐतिहासिक फागुन मेला, बसंत पंचमी और बस्तर दशहरा पर्व में रवानगी व वापसी के दौरान यह परंपरा देखी जा सकती है।