पटवारी भुईंया में सुधार करने के बाद पोर्टल से स्वत: विलोपित हो रहे डाटा एवं अन्य गड़बडिय़ों को अधिकारियों के संज्ञान में लाने के बाद भी पोर्टल की खामियों को सुधार कराने का कोई कारगर प्रयास न होने को लेकर चिंतित हैं।
यही हालात रहे तो हजारों किसान जिनका पंजीयन विगत वर्ष सहकारी समितियों में हुआ है और वर्तमान में पोर्टल से कई खसरा गायब है। उतने रकबा का धान सुधार नहीं हो पाने की स्थिति में धान बेच नहीं पाएंगे।
नए किसान जो इस खरीफ सीजन की उपज को विक्रय करने पंजीयन कराने की तैयारी में लगे हैं। उनकी जमीन के पट्टा में शामिल पूरे खसरा का बी-1 न निकल पाने से पंजीयन से वंचित हो जाएंगे। सोसायटी के पंजीयन साफ्टवेयर में वही रिकार्ड दर्शित हो रहे हैं, जितनी जमीन का रिकार्ड भुईंया पोर्टल में दर्ज है। ऐसे यदि पटवारी सत्यापन करके देता भी है। तो सहकारी समिति उतने रकबा का ही पंजीयन कर पांयेगी, जितीन भूमि रकबा भुईंया पोर्टल में दिखाई देगा। फिर चाहे किसान के पास वास्तविक में जितना भी जमीन हो।
– खसरों का अपने आप ही दूसरे बसरे में शामिल हो जाना जिससे भूमिस्वामी विहीन खसरे बसरे स्वत: निर्मित हो जा रहे हैं। – खसरे का बटांकन होने पर नया बटा नंबर में 0 आ जा रहा है।
– बटांकन किये गये खसरे का पुन: वापस मूल खसरा नंबर बन जाना।
– जाति के ऑप्शन में चन्द्रनाहू, सौंरा, पनिका माली सहित कई जातियों के नाम न आना। – पोर्टल प्रदर्शित ग्राम एवं वास्तविक ग्राम के नाम में अंतर होना।
– खसरा, बी-1 रिपोर्ट में राजस्व मंडल के सभी नामों का न प्रदर्शित होना।
– कई खसरा नंबरों का स्वत: ही शामिल खसरा के रूप में दिखना – खसरा नंबरों के बटांकन के बाद भी मूल खसरा नंबर का विलोपित न होना।
– खसरा नबरों के बटांकन एवं विलोपन का विकल्प एक साथ एक ही बार में करना।
संकेत ठाकुर, कृषि वैज्ञानिक, रायपुर