परवचन के अहमियत ल समझे के जरूरत हे
हजारों मनखे ये धारमिक आयोजनमन म सकलाथें। भलई, अच्छई, सेवा, परेम, अहिंसा, भाईचारा, सद्भाव, सांति, तियाग, सत, अउ न जाने कतकोन गुन के चरचा होथें। फेर, जेन किसम ले ऐकर परभाव घर-परिवार, समाज के बेवहार म दिखे बर चाही, वो नइ दिखय। परिवार टूटतेच हे। समाज बिखरतेच हे। जात-पात के भेदभाव बढ़तेच हे।
रायपुर
Published: June 13, 2022 04:49:59 pm
मितान! ‘पोथी पढि़ पढि़ जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।’ संत कबीर के बानी ह आजो एकदमेच अटल सत्य हे। सच हे। फेर, आजकाल मसीनरी अउ सुवारथ के जुग म कतकाझन लोगन हें जउनमन साधु-महात्मा, कथा कहइया, परवचन करइयामन के कहे बात ल मानथें, वोकरमन के बताय रद्दा म चलथें। वोला अपन अचार-बिचार अउ बेवहार म उतारथें। आज के समाज म तो अइसन मनखे अंगरी म गिने जा सकत हे। जबकि बछरभर भागवत कथा, परवचन, रमायन अउ दूसर किसम के धारमिक कारयकरम चलत रहिथे।
सिरतोन! हजारों मनखे ये धारमिक आयोजनमन म सकलाथें। भलई, अच्छई, सेवा, परेम, अहिंसा, भाईचारा, सद्भाव, सांति, तियाग, सत, अउ न जाने कतकोन गुन के चरचा होथें। फेर, जेन किसम ले ऐकर परभाव घर-परिवार, समाज के बेवहार म दिखे बर चाही, वो नइ दिखय। परिवार टूटतेच हे। समाज बिखरतेच हे। जात-पात के भेदभाव बढ़तेच हे। लोगनमन जादा से जादा अपन सुवारथ साधे बर दिन-रात बिधुन रहिथें।
मितान! अइसन धारमिक, सामाजिक आयोजनमन म जवइया जादाझन लोगनमन बने बातमन ल एक कान ले सुनके, दूसर कान ले निकाल देथें। अइसन म ये सुवाल उठथे के आखिर धारमिक आयोजनमन के का मतलब हे? आखिर कथा, परवचन सुने के दिखावा काबर? पूजा-पाठ, यग्य-हवन करे, भागवत कथा सुने के बाद घलो यदि समाज म लालच, जलन, हिंसा, नफरत, रंगभेद, छुआछूत, भेदभाव, बेमानी, अनाचार, अपराध आदि अवगुन बाढ़त हे त ये सच ल तुरंतेच माने बर चाही के लोगनमन ढोंगी अउ सुवारथी हो गे हें।
सिरतोन! समाज म आजकाल सियानमन के हीनता, छोड़े अउ अपमान के घटना बाढ़त जावत हे। कुल के तरइया, अंधरा के लउठी, बुढ़ापा के सहारा माने जवइया बेटामन दाई-ददा ल अकेल्ला छोड़ देवत हें। आसरम म भेज देवत हें। आजकल के औलादमन दाई-ददा के न बात मानंय, न बात सुनंय। अपन अधिकार के बात ल चिचिया-चिचिया कर करथें, फेर दाई-ददा के खातिर अपन जिम्मेदारी- जवाबदारी ल नइ निभावंय।
जब परवचन ह कोनो मनोरंजन के साधन नोहय। कथा, परवचन ह तो सद्करम के रद्दा देखाथे। अइसन म लोगनमन ल परवचन के मतलब (मर्म) समझे बर चाही। काबर के बने करम करे म ही परिवार, समाज अउ देस के भलई हे। फेर, सुवारथ अउ लालच के जमाना म अइसन नइ होवत हे, त अउ का-कहिबे।

परवचन के अहमियत ल समझे के जरूरत हे
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