एेसे में वे स्थिति में सुधार होते ही बिना बताए ही चले जाते हैं। वहीं अस्पताल परिसर में भर्ती मरीजों की कोई विशेष पहचान नहीं दी जाती जिससे मरीज की शिनाख्त सुरक्षा कर्मी नहीं कर पाते हैं। इतना ही नहीं अस्पताल प्रबंधन की ओर से दी जाने वाली एकमात्र पहचान गाउन तक रोजाना नहीं बदलने की शिकायत मरीज करते हैं। हालत यह है कि प्रबंधन लगभग 1200 बेड के एवज में 700 बेड की व्यवस्थाओं के अनुरूप अब भी कार्य कर रहा है।
नहीं होती कोई विशेष पहचान: बड़े-बड़े निजी अस्पतालों में मरीजों को विशेष पहचान के रूप में रिस्ट बैंड, कार्ड या फिर गाउन अनिवार्य रूप से दिया जाता है। जिससे मरीजों की पहचान की जा सके और उन्हें अनावश्यक रूप से परिसर से बाहर जाने पर रोक लगाई जा सके। इसके ठीक विपरीत आंबेडकर में एेसी कोई व्यवस्था मरीजों के लिए नहीं की जाती है, जिससे सुरक्षा कर्मी भी मरीज और परिजन में अंतर नहीं कर पाते।
हनुमान मंदिर के पास डीडी नगर पुलिस ने बरामद की। जिसके बाद मृतक के परिजनों ने उसकी शिनाख्त की और प्रबंधन से मुआवजे की गुहार लगाई। मामले को तूल पकड़ता देख प्रबंधन ने तीन सदस्यीय कमेटी का गठन कर जांच का जिम्मा सौंपा है। सवाल यह खड़ा होता है कि अस्पताल में भर्ती मरीज बाहर कैसे और कब गया।