गुलाब कोठारी ने कहा, सवाल यह है कि हम अपने बच्चों को समय कितना दे पाते हैं। हम बिना कुछ किए परिणाम हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें सुधार के लिए हम सामूहिक उत्तरदायित्व उठाएं तो एक-दूसरे के साथ मिलकर सूख से रह सकते हैं। कोठारी ने कहा, हमको इसपर भी सोचना है कि हम अपने घर पर नेतृत्व दे पा रहे हैं। मेरा बच्चा समाज में मेरा प्रतिनिधि होगा। उन्होनें कहा, पांच-सात साल तक बच्चों को कुछ नहीं बोलेंगे तो वह भी हाथ से निकल जाएगा। रिश्तों की गाड़ी आपसी संबंधों और नियंत्रण से ही चलती है। उनका कहना था, बच्चों को इनडायरेक्ट शिक्षा देनी पड़ती है। संयुक्त परिवारों का महत्व यही था कि उसमें दादा-दादी, नाना-नानी कहानियों में ज्ञान की बातें सिखा देते थे। यह कहानियां बच्चे के मन को सींचती थी, जो आधुनिक शिक्षा नहीं कर पा रही है। उन्होनें कहा, परस्पर सहभागिता से जीवन चलनें दें, यह कड़ी टूटी तो बड़ी तकलीफ होगी।
लालगंगा ग्रुप के एमडी अशोक पटवा ने कहा कि पहले मोहल्ले में भी रिश्तेदारों जैसा संबंध रहता था। पड़ोसी के बच्चों को भी गलत करते दिखने पर टोक देते थे। इससे अनुशासन बना रहता था। अब सोच बदल गई है। बच्चों से भावनात्मक दूरी भी बढ़ती जा रही है।
सिंघानिया बिल्डकॉन के चेयरमैन सुबोध सिंघानिया ने कहा, आज हम घर को हॉस्टल बना चुके हैं। परिवारों को टूटने से बचाने की जिम्मेदारी हमारी ही है। व्यस्ततम दिनचर्या के बावजूद हमें बच्चों को समय देना पड़ेगा। कोशिश हो की बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी के साथ मिलें।
चेयरमैन एटी ज्वेलर्स तिलोकचंद बरडिय़ा ने कहा, आज हमारे घर वृद्धाश्रम बनते जा रहे हैं। क्योंक हम अपने बच्चों को विदेश भेज रहे हैं। अच्छी शिक्षा दे रहे हैं, लेकिन हमारे अभिभावकों से मिली शिक्षा हम उन्हें नहीं दे पा रहे हैं। उसका असर समाज में दिख रहा है।
छत्तीसगढ़ चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष जितेंद्र बरलोटा ने कहा, आज के समय में मेट्रीमोनियल साइट पर शादी के लिए शर्तें शामिल हो गई है। एकल परिवारों को वरीयता दी जा रही है। पूछा जा रहा है कि क्या शादी के बाद मां-बाप भी साथ रहेंगे। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।
होटल जोन बाय द पार्क के एमडी धरमपाल कलश ने कहा, टीवी सीरियल में भी सास-बहु के रिश्तों को काफी प्रभावित किया है। सास को काफी क्रूर दिखाया जाता है। इसका समाज पर खराब असर पड़ रहा है।
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर परवानी ने कहा, पहले परिवार में पांच-छह बच्चे होते थे। एक को डांट पड़ती थी तो दूसरे सुधर जाते थे। लोग एक-दूसरे का सहयोग करते थे। अब ऐसा नहीं रह गया है।
चिकित्सक डॉ अजय सहाय ने कहा, अब बच्चे नहीं बाप पैदा हो रहे हैं। हम शायद वह आखिरी पीढ़ी है जिसने अपने मां बाप की सुनी और अब बच्चों की भी सुननी पड़ रही है। सभी मोबाइल में व्यस्त हैं, किसी का किसी पर ध्यान नहीं है।
एनएचएमएमआई के फैसिलीटी डायरेक्टर विनीत सैनी ने कहा, आज के दौर में परिवार हमारे प्राथमिकताओं में शामिल नहीं रहा। अगर परिवार प्राथमिकताओं में होता तो हम उसको समय भी दे पाते। इसका असर परिवार और समाज पर पड़ रहा है।