scriptमाता कौशल्या जन्मस्थली विवाद पर ‘पत्रिका’ की पड़ताल : आरंग का नाम भानुपुर था…ग्रंथों में इतना ही उल्लेख, बाकी आस्था है ? | Patrika investigation in Truth of Mata Kaushalya birthplace dispute | Patrika News

माता कौशल्या जन्मस्थली विवाद पर ‘पत्रिका’ की पड़ताल : आरंग का नाम भानुपुर था…ग्रंथों में इतना ही उल्लेख, बाकी आस्था है ?

locationरायपुरPublished: Dec 21, 2020 11:45:05 pm

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CG Desk

– माता कौशल्या राजा भानुमंत की बेटी थीं, आरंग का नाम भानुपुर था… ग्रंथों में इतना ही उल्लेख, बाकी आस्था है?
– माता कौशल्या की जन्मस्थली के विवाद पर ‘पत्रिका’ की पड़ताल-डॉ. हेमू यदु बोले- छत्तीसगढ़ की रामायण लिखने वाले स्व. डॉ. मन्नूलाल यदु के बेटे डॉ. हेमू कहते हैं ‘जब राम पर विवाद उठ सकता है, उनकी मां पर तो उठना ही था। मैं माता कौशल्या के पिता राजा भानुमंत पर शोध कर रहा हूं। क्योंकि उनके बारे में जानकारी मिली तो माता के बारे में भी तथ्य मिलेंगे। जिसे में जल्द ही साक्ष्य सामने रखूंगा’

माता कौशल्या जन्मस्थली विवाद पर 'पत्रिका' की पड़ताल : आरंग का नाम भानुपुर था...ग्रंथों में इतना ही उल्लेख, बाकी आस्था है ?

माता कौशल्या जन्मस्थली विवाद पर ‘पत्रिका’ की पड़ताल : आरंग का नाम भानुपुर था…ग्रंथों में इतना ही उल्लेख, बाकी आस्था है ?

रायपुर@ दिनेश यदु . आरंग के पास स्थित चंदखुरी माता कौशल्या की जन्मस्थली है या नहीं इसे लेकर प्रदेश में विवाद गहराया हुआ है। ‘पत्रिका’ इस विवाद की तह तक पहुंचा। ग्रंथों और इतिहास में दक्षिण कोसल के राजा भानुमंत का उल्लेख है। जिनकी बेटी भानुमति जो विवाह के बाद कौशल्या कहलाईं। त्रेतायुग में दक्षिण कोसल की राजधानी भानपुर थी, जो आरंग मानी जाती है। आरंग परिक्षेत्र में ही चंदखुरी है। वाल्मिकी रामायण में चंदपुर का जिक्र है, जिसे चंदखुरी माना जाता है। ग्रंथों में इतना ही जिक्र है। इसी चंदखुरी में माता कौशल्या का मंदिर है। जिसमें ५वीं शताब्दी की माता कौशल्या की मूर्ति स्थापित है। बस इतना ही इतिहास है। इतिहासकारों का मानना है, माता कौशल्या की जन्मस्थली का किसी ग्रंथ, पुराण में कोई उल्लेख नहीं है।
प्रदेश के 3 स्थानों पर माता कौशल्या की जन्मस्थली होने का दावा किया जा रहा है। मगर, चंदखुरी को छोड़कर शेष कहीं पर भी कोई पुरातत्विक प्रमाण नहीं मिले हैं। बस स्थानीय नामों से माता कौशल्या का नाम जोड़कर दावे, प्रतिदावे किए जा रहे हैं। सच्चाई तो यह भी है कि चंदखुरी का मंदिर किसने, कब बनवाया? इसका भी अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। मगर, तर्क यह भी है कि सिर्फ इसी जगह पर कौशल्या मंदिर क्यों? जानकारों, इतिहासकारों और धार्मिक ग्रंथों पर शोध करने वाले कहते हैं कि यह आस्था है। इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। मगर, इनके मतभेद हैं। कोई कहता है कि उत्खनन करवाना चाहिए, तो कोई कहता है कि 5 हजार साल पुरानी चीजें मिलना संभव ही नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर माता कौशल्या की जन्मस्थली चिन्हिंत कैसे हो? उधर, उनके जन्मतिथि को लेकर भी संत समागम भी प्रस्तावित है।
3 स्थानों पर माता कौशल्या की जन्मस्थली का दावा, जानें कहां-कहां-
चंद्रखुरी (आरंग)- छत्तीसगढ़ की रामायण के रचियता स्व. डॉ. मन्नू लाल यदु लिखते हैं त्रेतायुग में दक्षिण कोसल के राजा भानुमंत (भानुमान) थे। उनकी बेटी भानुमति का विवाह उत्तर कोसल के युवराज दशरथ से हुई। कोसल की राजकुमारी होने के नाम उनका नाम कौसल्या पड़ गया। राजा ने दहेज में दक्षिण कोसल का बड़ा हिस्सा बेटी को दहेज में दे दिया। आरंग से 20 किमी दूर चंदखुरी है, जहां माता कौशल्या का मंदिर है, जो भगवान राम को गोद में लिए बैठी हैं।
कोसला (बिलासपुर)- वर्तमान में इसे लेकर राजनीति गरमाई हुई है। मगर, इतिहासकारों का मानना है कि यहां कोई पुरातत्व अवशेष नहीं मिले हैं।
कोसीर (सारंगढ़, रायगढ़)- भगवत पुराण के आधार पर भगवान राम ने अपने पुत्र लव को उत्तर कोसल और कुश को दक्षिण कोसल का राजा बनाया था। दक्षिण कोसल की सीमा उत्तर में गंगा, दक्षिण में गोदावरी, पश्चिम में उज्जैन और पूर्व में ओडिशा के समुद्र क्षेत्र से लगती थीं। एक दावा जांजगीर चांपा में कौसिर को लेकर भी हो रहा है।
(जैसा की जानकारों ने बताया और ग्रंथों में उल्लेख है, उसके अनुसार।)

एक तथ्य यह भी है-
सिहावा में ऋंगी ऋषि का आश्रम है। ये ऋषि ही राजा मानुमंत को आमंत्रण मिलने पर नदी मार्ग से अयोध्या लेकर पहुंचे थे। ऐसा उल्लेख है कि महानदी और खारून नदी के मध्य का भू-भाग दक्षिण कोसल की राजधानी का क्षेत्र रहा होगा।
आखिर क्यों उपजा विवाद-
भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने ३ दिन पहले बयान दिया। कहा- चंदखुरी माता कौशल्या की जन्मस्थली नहीं है, वहां सिर्फ उनका मंदिर है। उनकी जन्मस्थली कोसला (बिलासपुर) के पास है। इसके बाद से प्रदेश की राजनीति में यह मुद्दा गरमाया है। भाजपा, कांग्रेस आमने-सामने हैं।
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माता कौशल्या का मंदिर किसी विवाद का मसला नहीं होना चाहिए। यह परंपरा और आस्था का विषय है, इसे ऐसी ही स्वीकार करना चाहिए। कौशल्याजी कौसल राज्य की राजकुमारी थी, यह निर्विवाद है। मगर किसी भी ग्रंथ में भानुमंत की राजधानी का उल्लेख नहीं है। अब अगर आप खुदाई करेंगे भी तो कोई प्रमाण नहीं मिलेंगे। राज्य में ५वीं-६वीं शताब्दी के पहले का कुछ भी नहीं है।
प्रो. एलएस निगम, इतिहासकार
चंद्राकर जी का बयान पूरी तरह से राजनीतिक स्टंट है। वे जब पंचायत मंत्री रहे तब तो उन्होंने सुध नहीं ली। हां, अगर वे चंदखुरी के विकास को लेकर कोई सुझाव देते हैं तो उसे बिल्कुल स्वीकार किया जाएगा। आज तो हमारे राज्य में ही कई दावे किए जा रहे हैं, कल को दूसरे राज्य वाले भी दावा करने लगे तो क्या वहां भी जाकर खुदाई करवाई जाएगी। चंदपुरी में प्रमाण है, कोसला में नहीं।
– महंत राम सुंदर दास, महंत, दूधाधारी मठ रायपुर।
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