सही प्लान के साथ विकास नहीं
सीनियर एडवोकेट एवं पूर्व महापौर डॉ. किरणमयी नायक ने पत्रिका उत्सव में कहा कि रायपुर शहर पहले तालाबों का शहर हुआ करता था। इसकी पहचान भी हम पूर्व कांग्रेसी नेताओं और भिलाई स्टील प्लांट का नाम बताकर दीगर राज्यों में कराते थे, तभी लोग रायपुर को जानते थे। इस कस्बानुमा शहर का विकास राजधानी बनने के बाद से बहुत तेजी से विकास हुआ है, लेकिन जिस प्लान के साथ शहर का विकास होना चाहिए, वह नहीं हो पाया। मेरे महापौर कार्यकाल के दौरान बनाए गए प्लान पर भी काम किसी तरह शुरू नहीं हो पाए, जिसका अफसोस है। किसी शहर के बेहतर विकास के लिए शहर के लोगों की सहभागिता बहुत जरूरी है, तभी शहर का विकास सुव्यस्थित तरीके से हो सकता है। चाहे वह टै्रफिक, साफ-सफाई, अधोसंरचना हो या फिर अन्य मामले में। जब तक लोगों की सहभागिता नहीं होगी, तब तक शहर व्यवस्थित तरीके से विकसित नहीं हो सकता है।
पुराने शहर को ही नया बनाने हो प्रयास
मगन लाल अग्रवाल ने पत्रिका उत्सव में कहा कि हमारा शहर पहले से ही व्यापारिक हब के रूप में जाना जाता है। आज रायपुर का दो स्वरूप हो गया है नया और पुराना। खुशी की बात है कि आज भी पुराने रायपुर का स्वरूप बरकरार है। नया रायपुर युवाओं की पसंद है, मेरे कहने का मतलब यह है कि युवा वर्ग शापिंग मॉल की ओर बढ़ रहे है। दुर्भाग्य की बात यह है कि शासन ने नया रायपुर तो बना दिया है, लेकिन वहां बसाहट के नाम पर कुछ भी नहीं है। शासन को पुराने रायपुर को नया रायपुर बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। नया रायपुर का नाम भले ही देश में जाना जाता है, लेकिन जहां 14 लाख की आबादी रह रही है,वहां के अधोसंरचना, टै्रफिक, सड़कें, बाजारों के डेवलपमेंट के लिए बहुत काम करने की जरूरत है। विकास में बगैर शहरवासियों की सहभागिता के बेहतर शहर की परिकल्पना नहीं कर सकते हैं।
संरचनात्मक बनावट पर होना चाहिए फोकस
पत्रिका उत्सव में जाने-माने आर्किटेक्ट संदीप श्रीवास्तव ने कहा कि वक्त के साथ काफी परिवर्तन हुआ है और हो रहा है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि यह परिवर्तन का दौर है। मेरे ख्याल से नए शहर में बसने में लोगों को थोड़ी झिझक होती है। लोगों को एक नई जगह पर लाने के लिए शासन को अतिरिक्त सुविधाएं देनी होती है, तभी नए शहर में लोग रहने आते हैं। मसलन, व्यापारियों को नए शहर में बनाई गई दुकानों का निशुल्क चलाने के लिए निश्चित समय तक के लिए देनी चाहिए, तभी लोग वहां व्यापार करने आएंगे। जब नए शहर में बाजार डेवलप होगा, तो आबादी यानी लोग रहने के लिए अपने-आप आएंगे। मुझे लगता है शहर की पहचान का कैरेक्टर होता है। रोम और यूरोप की पहचान अलग आर्किटेक्ट कैरेक्टर है, लेकिन अपने देश में आर्किटेक्ट कैरेक्टर नहीं दिखता है। इसलिए मैंने जब नगर निगम का व्हाइट हाउस डिजाइन किया तो लोगों ने पता नहीं क्या-क्या नहीं कहें, लेकिन मैंने सरकारी भवनों के डिजाइन को बदलने का ठाना था, आज नगर निगम मुख्यालय का नाम सुनते ही लोगों की जेहन में व्हाइट हाउस की तस्वीर उभरती है। शहर के टै्रफिक को दुरस्त करने की जरूरत है। युवाओं को शहर को और बेहतर बनाने के लिए अपनी सहभागिता देनी चाहिए, तभी एक बेहतरीन शहर के रूप में डेवलप हो सकता है।
श्रोताओं के सवाल
केटीयू स्टूडेंट राजेन्द्र ओझा का सवाल था – भैंसथान को हटाए करीब 30 साल हो गए है, लेकिन जिस उद्देश्य के उस वहां से शिफ्ट किए गए थे, वह स्थान आज भी वैसा ही है। आज भी शहर में आवारा पशुओं की धमाचौकड़ी से हर शहरवासी खासे परेशान रहते हैं।