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रायपुर

जेल में सौ रुपए के लिए मां से लड़ बैठी थी दस्यु सुंदरी फूलन देवी, जानिए उनसे जुड़ी कई अनजान बातें

आज ही के दिन दस्यु सुंदरी फूलन देवी की हुई थी हत्या, जानिए उनसे जुड़ी कुछ एेसी बातें जो शायद ही कोई जानता हो।

रायपुरJul 25, 2018 / 06:53 pm

Ashish Gupta

Phoolan Devi Death Anniversary

जेल में सौ रुपए के लिए मां से लड़ बैठी थी दस्यु सुंदरी फूलन देवी, जानिए क्या थी वजह

राजकुमार सोनी/रायपुर. कभी आतंक का पर्याय रही दस्यु सुंदरी फूलनदेवी ने जब सरेंडर किया था, तब उसके पास थोड़े पैसे थे। एक बार फूलन की मां उससे मिलने आई, तब फूलन ने उसे सौ रुपए दिए थे। फूलन की मां जब दोबारा पैसे मांगने आई, तब दोनों के बीच सौ रुपए के खर्च पर विवाद की स्थिति बन गई थी। एक समय था, जब फूलन सौ रुपए के लिए अपनी मां से लड़ बैठी थी और एक ऐसा समय भी आया, जब वह सांसद बनी, तो उसके पास पैसा, गाड़ी, बंगला सबकुछ था।
दस्यु सुंदरी से जुड़े ऐसे कई पहलू सुनाते हैं रायपुर में रह रहे पूर्व जेल अधिकारी किरण सुजोरिया। कांकेर में जन्मे किरण सुजोरिया भी कोई मामूली हस्ती नहीं हैं। हाल ही में दिवंगत हुए कांकेर में ही रहे साहित्यकार तेजिंदर गगन ने उनके किरदार वाला एक ख्यात उपन्यास लिखा था ‘वह मेरा चेहरा’।
सुजोरिया जब मध्यप्रदेश की ग्वालियर जेल में बतौर वेलफेयर अधिकारी पदस्थ थे, तब दस्यु सुंदरी फूलनदेवी के कहने पर चिट्ठियां लिखा करते थे। ऐसी ही एक दुर्लभ चिट्ठी उन्होंने बड़े ही जतन से आज भी संभालकर रखी है। फूलनदेवी ने इस चिट्ठी में जेल अधीक्षक से उसके खिलाफ चल रहे प्रकरणों की जानकारी मांगते हुए यह जानना चाहा है कि उसके खिलाफ कुल कितने मामले चल रहे हैं? 
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नामचीन आते थे मुलाकात करने
ग्वालियर जेल में महिला डकैत कुसुमा नाइन, डाकू पूजा बब्बा, मलखान सिंह सजा काट रहे थे, लेकिन ज्यादातर लोग फूलन को देखने और मिलने के लिए आया करते थे। मिलने वालों में ज्यादातर विदेशी थे, जो बड़ी-बड़ी गिफ्ट लेकर आते थे। जेल में ब्रितानी लेखक रॉय माक्सहैम आते थे, ‘इंडियाज द बैंडिट क्वीन’ लिखने वाली माला सेन भी आया करती थी। सुजोरिया को याद है कि एक बार फिल्म एक्टर राजेश खन्ना अपनी पत्नी डिंपल कपाडिया को लेकर फूलन से मुलाकात करने आए थे।

कुसुमा नाइन ने जताया था विरोध
सुजोरिया बताते हैं कि एक बार डकैत कुसुमा नाइन ने जेल में फूलन को दी जा रही सुविधाओं को लेकर सवाल खड़े किए थे। कुसुमा को यह नहीं मालूम था कि फूलन ने जेल प्रशासन से कभी कोई खास सुविधा की मांग नहीं की थी। वह दस बाई दस के एक कमरे में रहती थी।

कभी घोड़े की सवारी नहीं की
हिंदी फिल्मों में चंबल के डकैतों को घोड़े पर सवार, मां दुर्गा और काली का भक्त दिखाया जाता है, लेकिन सुजोरिया बताते हैं कि तमाम तरह की असहमतियों के बावजूद फूलन अपनी मां को ही सबकुछ मानती थी। पुलिस हमेशा हनुमान चालीसा पढ़ते हुए फूलन का पीछा करती थी, मगर फूलन चकमा देते रहती थी। उसका मानना था कि कभी भी और कहीं भी गोलीबारी हो जाएगी, तो घोड़ा हिनहिना देगा, इसलिए वह घोड़े का सहारा नहीं लेती थी। वो गांव के सरपंच या मुखिया को बोलकर ट्रेक्टर या जीप से ही आना-जाना करती थी।

सुजोरिया कहते हैं- फूलन को डकैत विक्रम मल्लाह के बाद उम्मेद सिंह (उसके पति) ने भावनात्मक सहारा दिया था, लेकिन दुष्कर्म की शिकार फूलन कभी मां नहीं बन सकी। उसका गर्भाशय खराब हो गया था। सुजोरिया कहते हैं- बिना मुकदमा चले लगभग 11 साल तक जेल में रहने वाली फूलन को कोई अपराधी कहता है, तो कोई यह मानता है कि जैसा उसका अंत होना चाहिए था वैसा ही हुआ, लेकिन वह असाधारण महिला थी। वह अच्छी तरह से जानती थी कि उसके विद्रोह का मतलब क्या है?

सिर्फ दस्तखत करना जानती थी फूलन
10 अगस्त 1963 को उत्तरप्रदेश के एक गांव पूरवा में जन्मी फूलनदेवी ने वर्ष 1983 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समक्ष सरेंडर किया था। सुजोरिया बताते हैं, फूलन को स्पेशल वार्ड के फीमेल सेक्शन में रखा गया था। फूलन लिखने-पढऩे के नाम पर सिर्फ दस्तखत करना ही सीख पाई थी। सुजोरिया बताते हैं- वो बोलकर ही चिट्ठी लिखवाया करती थी और अपने जीवनकाल में उसने सबसे ज्यादा चिट्ठी अपनी मां को ही लिखवाई। हर चिट्ठी में वह यह जरूर लिखवाती थी कि जेल में वह ठीक है। चिंता मत करना।

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