नामचीन आते थे मुलाकात करने
ग्वालियर जेल में महिला डकैत कुसुमा नाइन, डाकू पूजा बब्बा, मलखान सिंह सजा काट रहे थे, लेकिन ज्यादातर लोग फूलन को देखने और मिलने के लिए आया करते थे। मिलने वालों में ज्यादातर विदेशी थे, जो बड़ी-बड़ी गिफ्ट लेकर आते थे। जेल में ब्रितानी लेखक रॉय माक्सहैम आते थे, ‘इंडियाज द बैंडिट क्वीन’ लिखने वाली माला सेन भी आया करती थी। सुजोरिया को याद है कि एक बार फिल्म एक्टर राजेश खन्ना अपनी पत्नी डिंपल कपाडिया को लेकर फूलन से मुलाकात करने आए थे।
कुसुमा नाइन ने जताया था विरोध
सुजोरिया बताते हैं कि एक बार डकैत कुसुमा नाइन ने जेल में फूलन को दी जा रही सुविधाओं को लेकर सवाल खड़े किए थे। कुसुमा को यह नहीं मालूम था कि फूलन ने जेल प्रशासन से कभी कोई खास सुविधा की मांग नहीं की थी। वह दस बाई दस के एक कमरे में रहती थी।
कभी घोड़े की सवारी नहीं की
हिंदी फिल्मों में चंबल के डकैतों को घोड़े पर सवार, मां दुर्गा और काली का भक्त दिखाया जाता है, लेकिन सुजोरिया बताते हैं कि तमाम तरह की असहमतियों के बावजूद फूलन अपनी मां को ही सबकुछ मानती थी। पुलिस हमेशा हनुमान चालीसा पढ़ते हुए फूलन का पीछा करती थी, मगर फूलन चकमा देते रहती थी। उसका मानना था कि कभी भी और कहीं भी गोलीबारी हो जाएगी, तो घोड़ा हिनहिना देगा, इसलिए वह घोड़े का सहारा नहीं लेती थी। वो गांव के सरपंच या मुखिया को बोलकर ट्रेक्टर या जीप से ही आना-जाना करती थी।
सिर्फ दस्तखत करना जानती थी फूलन
10 अगस्त 1963 को उत्तरप्रदेश के एक गांव पूरवा में जन्मी फूलनदेवी ने वर्ष 1983 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समक्ष सरेंडर किया था। सुजोरिया बताते हैं, फूलन को स्पेशल वार्ड के फीमेल सेक्शन में रखा गया था। फूलन लिखने-पढऩे के नाम पर सिर्फ दस्तखत करना ही सीख पाई थी। सुजोरिया बताते हैं- वो बोलकर ही चिट्ठी लिखवाया करती थी और अपने जीवनकाल में उसने सबसे ज्यादा चिट्ठी अपनी मां को ही लिखवाई। हर चिट्ठी में वह यह जरूर लिखवाती थी कि जेल में वह ठीक है। चिंता मत करना।