नदियों को बचाइए
रायपुरPublished: Oct 15, 2018 07:25:16 pm
नदियों के संरक्षण, संवर्धन और सुरक्षा के प्रति सरकारें लापरवाह रही हैं
प्रदेशवासियों के लिए बेहद गर्व की बात है कि गंगा की अविरलता का मामला छत्तीसगढ़ की धरती से भी जुड़ा हुआ है। अम्बिकापुर के पास मतिरंगा पहाड़ी से निकली रिहंद और जशपुर जिले की बखौना पहाड़ी से निकली कनहर नदी गंगा की धारा बनाती है। लेकिन दुख व चिंता की बात है कि गंगा की अविरलता को बचाए रखने के लिए 111 दिनों तक अनशनरत वैज्ञानिक, पर्यावरणविद् और संत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की मौत के बाद भी देश-प्रदेश में जीवनयदायनी नदियों के संरक्षण, संवर्धन, शुद्धता व अविरलता के प्रति न गंभीरता नजर आ रही है और न ही उत्साह व जागरुकता। नदियों पर मनुष्य ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी, जीव-जंतु, पेड़े-पौधे भी आश्रित होते हैं। हमें इनकी सेवा करनी चाहिए। हम इन नदियों से सेवा तो ले रहे हैं, लेकिन संरक्षण के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। नदियों के संरक्षण, संवर्धन और सुरक्षा के प्रति सरकारें लापरवाह रही हैं।
गंगा नदी की भांति प्रदेश की नदियों की भी उपेक्षा अनवरत जारी है। वनों की कटाई, खनिजों का अंधाधुंध दोहन और रेत खदानों के वजह से न केवल नदियों का जलग्रहण ही प्रभावित हो रहा है, बल्कि उनकी बहाव की दिशा भी बदल रही है। उद्योगों का गंदा पानी, नालियों की गंदगी और रासायनिक पदार्थ प्रभावित होने से नदियां प्रदूषित हो रही हैं। प्रतिमाओं के अवशेषों, पूजा सामग्रियों और जलकुंभी से भी नदियां उथली हो रही हंैं। फलस्वरूप, गर्मी में लोगों को सिंचाई के लिए न पर्याप्त पानी मिलता है और न ही पीने के लिए शुद्ध जल। पर्यावरण को क्षति पहुंच रही है, सो अलग। हद तो यह है कि प्रदेशभर में नदियों पर बेहद घटिया, बेतरतीब और अनुपयोगी नहर नालियां और एनीकट बनाए जा रहे हैं। यदि अब भी सरकार नहीं जागी तो भविष्य में 26 नदियों वाले प्रदेश छत्तीसगढ़ को पानी के लिए हमेशा तरसना पड़ेगा।
बहरहाल, सरकार को नदियों को सहेजने और संजोने के लिए युद्धस्तर पर कार्य शुरू कर देने चाहिए। उनका इस तरह से संरक्षण करें कि सदियों तक निर्बाध और निर्मल बहती रहें। नदियों का अस्तित्व और जल की शुद्धता हर हाल में बनी रहनी चाहिए। यदि नदियों को नहीं बचाया तो एक दिन वे रूठ कर हमेशा के लिए चली जाएंगी।