फांसी का इंतजार
रायपुरPublished: Aug 29, 2018 05:41:02 pm
दुष्कर्म और उसकी निर्ममता से हत्या के दोषी को फांसी की सजा
फास्ट ट्रैक कोर्ट दुर्ग द्वारा मूक-बधिर मासूम के साथ दुष्कर्म और उसकी निर्ममता से हत्या के दोषी को फांसी की सजा सुनाना सराहनीय ही नहीं, बल्कि अनुकरणीय भी है। क्योंकि, देश-प्रदेश में अनाचार की घटनाएं बेतहाशा बढ़ रही हैं। आज नारी कहीं भी सुरक्षित नहीं है। लचर कानून व्यवस्था, न्याय में देरी और सामाजिक शिथिलता के चलते दुराचारियों का कुछ बिगड़ता भी नहीं। उन्हें न कानून का भय है और न ही समाज का। चिंता की बात है कि बलात्कार जैसे संगीन अपराध में भी अधिकतर आरोपियों को सख्त सजा नहीं होती है, जिसका खमियाजा पूरे समाज को भुगतना पड़ता है।
एक तरफ जहां समाज बहुत ही विकसित हो गया है। ज्यादातर लोग शिक्षित हो गए हैं। आधुनिक होने का ढिंढोरा पीट रहे हैं, यहां तक की उच्च समाज का चोला तक पहन लिए हैं। बावजूद इसके पुरुषों का नारी के प्रति ‘पशुवतÓ व्यवहार यथावत है। इसमें कमी होती दिखाई नहीं पड़ती। लोग अपने घरों में या अपने समाज में लड़की की स्वतंत्र हैसियत, उसकी आर्थिक आजादी और उसकी कामयाबी को स्वीकार नहीं करते हैं। नारी न घर में सुरक्षित है और न ही बाहर। शिक्षण संस्थानों और धार्मिक स्थलों तक में अनैतिक कार्य हो रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक लड़की से सबसे ज्यादा मनमानी घर में होती है और वह भी रिश्तेदारों के बीच। बलात्कारी भी समाज का आदमी होता है। वह यह सब देखता-सुनता और जानता है। फलस्वरूप वह दुष्प्रेरित होता है। कोई बालिका, कब, कहांं दुष्कृत्य व शारीरिक शोषण का शिकार हो जाएगी, यह किसी को मालूम नहीं है।
दूसरी ओर दुष्कर्म जैसी घृणित व वहशी घटनाएं दोषियों को मृत्युदंड देने से ही कम हो जाएगी, ऐसा सोचना भी अतिश्योक्ति होगी। क्योंकि, इसके लिए मनोवृत्ति बदलने की अत्यंंत आवश्यकता है। पुलिस और समाज दोनों को अपने आचार-विचार, कार्यप्रणाली और सोच बदलनी होगी। बच्चों को संस्कारवान, नैतिकवान, चरित्रवान बनाना होगा। शिक्षण संस्थानों में नैतिक शिक्षा अनिवार्य करना होगा। सुसंस्कारित, मर्यादित व नैतिकवान समाज में ही नारी की सुरक्षित रहने की कल्पना की जा सकती है।
बहरहाल, आज दुष्कर्मियों को शीघ्र ही फांसी पर लटकाने की जरूरत है। इतना ही नहीं, दुष्कमियों का समर्थन करने, उन्हें बचाने, जांच में व्यवधान डालने व लापरवाही बरतनेे वालों को भी सख्त सजा मिलनी चाहिए। अनाचारियों को मौत की सजा सुनाने के बाद उसका शीघ्र ही क्रियान्वयन भी होना चाहिए। अनाचारियों को फांसी देने का व्यापक प्रभाव समाज में घूम रहे वहशी दरिदों पर पडऩा चाहिए। यदि समाज से अपराधियों, दुष्कर्मियों, चरित्रहीनों और असामाजिक तत्वों का सफाया नहीं होगा, दुष्कर्मियों को त्वरित सजा नहीं मिलेगी, तो बच्चियों, युवतियों व महिलाओं की सुरक्षा की उम्मीद बेमानी है।