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रायपुर

सद्कर्म कीजिए

जीव्हा के अच्छे वचनों से दुश्मनी दोस्ती में और कटु वचनों से दोस्ती दुश्मनी में बदल जाती है

रायपुरOct 01, 2018 / 07:09 pm

Gulal Verma

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सद्कर्म कीजिए

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय। संत कबीर की यह वाणी आज भी अकाट्य सत्य है। राजधानी रायपुर में चातुर्मास कर रहे आचार्य विजयराज ने कहा कि भगवान महावीर ने 18 पाप के बारे में बताया है, उसमें से 12वां पाप है कलह। कलह का मुख्य कारण है मनुष्य की जीव्हा। जीव्हा के अच्छे वचनों से दुश्मनी दोस्ती में और कटु वचनों से दोस्ती दुश्मनी में बदल जाती है। आज कलह ने पूरे संसार के मनुष्यों को परेशान किया हुआ है। कलह विचारों व भावों के आदान-प्रदान से हुए ऊंच-नीच से होता है। आचार्यजी की बातें सौ फीसदी सत्य है। कटु वचन बोलने मेें न कोई वर्ग अछूता है और न ही उससे उपजे कलह से कोई क्षेत्र। कितने लोग अपने मान और अहंकार का त्याग करके मीठी वाणी में बात करते हैं। स्वयं खुश होते हैं और दूसरों का दिल जीतते हैं। कटु वचन बोलकर दूसरों को दु:ख, पीड़ा नहीं पहुंचाते हैं। न किसी को अपमानित करते हैं और न ही किसी को नीचा दिखाते हैं।
आज के समाज में साधु-महात्माओं, कथा वाचकों, प्रवचनकर्ताओं की कही बातों का अनुसरण करने, उसे अपने आचार-विचार और व्यवहार में उतारने वाले लोग उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। जबकि लगभग सालभर भागवत, प्रवचन, रामकथा इत्यादि का सिलसिला चलता रहता है। हजारों लोग इन धार्मिक आयोजनों में जुटते हैं। भलाई, अच्छाई, सेवा, प्रेम, अहिंसा, भाईचारा, सद्भाव, सौहार्द, त्याग, सत्य और न जाने कितने गुणों पर चर्चाएं होती हैं। लेकिन जिस तरह का प्रभाव जमीनी स्तर पर समाज के व्यवहार में दिखना चाहिए, वह नहीं दिखता। परिवार टूट रहे हैं। समाज बिखर रहे हैं। जातिवाद बढ़ रहा है। चरित्र व नैतिक पतन हो रहा है। लोग अधिक से अधिक अपने स्वार्थ से संचालित हो रहे हैं।
विडम्बना है कि धार्मिक, सामाजिक व अन्य आयोजनों में जाने वाले ज्यादातर लोग अच्छी बातों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं। ज्यादातर लोग गंदगी फैलाते नजर आते हैं। यहां तक की आयोजन स्थल पर भी गंदगी का आलम होता है। ऐसे में यह प्रश्न पैदा होता है कि आखिर धार्मिक आयोजनों का क्या औचित्य है? आखिर कथा, प्रवचन व धार्मिक व्याख्यान सुनने का दिखावा क्यों? पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान, भगवत कथा श्रवण करने के बावजूद यदि आज समाज में लालच, द्वेष, ईष्र्या, हिंसा, नफरत, रंगभेद, जातिवाद, बेईमानी, अनाचार, अपराध आदि अवगुण बढ़ रहे हैं तो इस सच को तुरंत मानना चाहिए कि लोग ढोंगी और स्वार्थी हो चुके हैं। प्रवचन कोई मनोरंजन का साधन नहीं है। कथा, प्रवचन तो सद्कर्म का मार्ग दिखाता है। बहरहाल, लोगों को कथा का मर्म समझना चाहिए, क्योंकि अच्छे कर्म में ही समाज व देश का हित निहित है।

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