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ग्रामीणों की सुनें

locationरायपुरPublished: Sep 10, 2018 10:28:40 pm

Submitted by:

Gulal Verma

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण आकलन समिति के सामने ग्रामसभाओं की स्वीकृति का फर्जी दस्तावेज पेश

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ग्रामीणों की सुनें

सरगुजा जिले के परसा कोल ब्लॉक में खनन के लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड द्वारा केंद्रीय वन एवं पर्यावरण आकलन समिति के सामने ग्रामसभाओं की स्वीकृति का फर्जी दस्तावेज पेश करना चिंता की बात है। क्योंकि, मामला फर्जी प्रस्ताव पेश करने का ही नहीं है, बल्कि कंपनी की नीयत व कार्यप्रणाली का है। उदयपुर तहसील के गांव सिल्ही और हरिहरपुर के ग्रामीणों ने तो बाकायदा अम्बिकापुर कलक्ट्रेट पहुंचकर ग्रामसभाओं की सहमति के दोनों प्रस्ताव को फर्जी करार दिया है। ऐसे में भूमि अधिग्रहण के लिए फर्जी दस्तावेज का सहारा लेना यह दर्शाता है कि कंपनी ग्रामसभाओं की किस कदर उपेक्षा कर रही है। कैसे नियमों की धज्जियां उड़ा रही है। स्थानीय प्रशासन कैसे मूकदर्शक बना हुआ है।
कोयला खदानों के लिए विद्युत उत्पादन निगम और उसकी एमडीओ अडानी ग्रुप को भूमि अधिग्रहण के लिए ग्रामसभाओं ने स्वीकृति नहीं दी है तो इसके पीछे पर्यावरण, जल, जंगल, जमीन व जनजीवन से जुड़ी चिंताएं काम कर रही हैं। आखिर, सरकार कंपनियों को ग्रामीणों व किसानों के तमाम विरोध के बावजूद जल, जमीन, खनिज सहित कई प्रकार की सुविधाएं व सहूलियतें कब तक देती रहेगी? ग्रामीण कब तक उपेक्षा और कष्ट सहते रहेंगे? राज्य और देश के आर्थिक विकास के लिए खनिज खनन जरूरी है। लेकिन खनन से पहले यह जरूर देख लेना चाहिए कि पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचेगा। रहवासियों को कितनी परेशानी होगी। कृषि भूमि को कितना नुकसान होगा। पर्यावरण को नुकसान और कृषि, किसान व ग्रामीणों को तबाह कर किया गया विकास कतई प्रशंसनीय नहीं है।
हाल के वर्षों में वनों की अंधाधुंध कटाई और खनिजों का बेतहाशा उत्खनन होने से पर्यावरण को भारी क्षति पहुंची है। इसके दुष्प्रभाव से ‘मौसमÓ भी अछूता नहीं रहा है। मौसम चक्र में परिवर्तन अशुभ संकेत है। मानव जीवन के लिए पर्यावरण का संरक्षण जरूरी है। केवल मानव जीवन ही नहीं, बल्कि वन्य जीवन को बचाना भी हमारा ही कर्तव्य है। प्रदेश के जंगलों-पहाड़ों में जिस तरह से खास कार्य चल रहे हैं, उससे विशेष रूप से हाथी जैसे विशाल जीवों को ज्यादा परेशानी हुई है। खनन की होड़ में हमने हाथियों और अन्य वन्य जीवों से उनका रहवास छिन लिया है। कंपनियां बहुत बेरहमी से कार्य करती हैं और पहाड़- जंगल, पशु-पक्षी, खेत-खार, गांव-ग्रामीण को हमेशा के लिए ‘घावÓ पहुंचा देती हैं।
बहरहाल, प्रदेश शासन को इस मामले में दोषियों के खिलाफ सख्ती बरतते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आने वाली पीढ़ी को कभी भी आज की पीढ़ी को कोसने की नौबत ही ना आए। क्योंकि, आर्थिक विकास देखने के साथ ही छत्तीसगढ़ का स्वाभाविक और सुन्दर स्वरूप बनाए रखना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है।

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