शोर हो या धुआं, ये बेफिक्र
रायपुरPublished: Oct 31, 2018 06:53:43 pm
साल-दर-साल प्रदूषण बढ़ रहा
शोर हो या धुआं, ये बेफिक्र
प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए महकमा है और जिम्मेदार अधिकारी भी, लेकिन इनका नकारापन ही कहेंगे कि इसमें कमी आने की बजाय साल-दर-साल प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। हाल यह है कि देश की सर्वोच्च अदालत को इस पर गाइडलाइन जारी करनी पड़ती है। देशभर में इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण मंडल जैसी संस्था है। यहां के अधिकारियों, वैज्ञानिकों का का दायित्व है कि जल, वायु और अन्य तरह के प्रदूषण पर नजर रखें, नियंत्रण के उपाय करे औैर प्रदूषण के आंकड़ों को सार्वजनिक कर जनजागरुकता के प्रयास करे। हकीकत इससे उलट है, यह अपना काम भी पूरी जिम्मेदारी से नहीं कर पा रहे और तो और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश-निर्देश को भी प्रदूषित हवा में उड़ाने या गंदे पानी में घोल देते हैं। आंकड़ों को सार्वजनिक करने तक से बचते हैं। वैज्ञानिक आंकड़े जुटाकर फाइल में दबा देते हैं।
छत्तीसगढ़ में रायपुर, दुर्ग समेत छह शहरों में पटाखे फोडऩे पर पाबंदी लगाई थी, लेकिन एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया जब प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने खुद या उसकी सिफारिश पर कोई कार्रवाई हुई हो। इस निष्क्रियता के भी फायदे उठाए जाते हैं, कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उसका मतलब निकाला जाता है कोई नियम नहीं तोड़ा गया, कहीं कोई प्रदूषण नहीं हुआ। विजर्सन कुंड बनवाने में इनकी कोई दिलचस्पी नजर नहीं आती। दुर्ग की शिवनाथ नदी में प्रतिमा विसर्जन होने पर भी इनको कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसा ही हाल अब पटाखों को लेकर है। पटाखों के लिए पहले से मानक तय हैं, जिससे अधिक शोर मचाने वाले पटाखे नहीं फोड़े जा सकते। ज्यादा धुआं करने वाले पटाखों को नहीं फोडऩा है। लेकिन तय मानक से अधिक शोर और धुआं करने वाले पटाखे बिकते हैं और फूटते भी हैं। भले ही सर्वोच्च न्यायालय ने ग्रीन पटाखों की अनिवार्र्यता दिल्ली और एनसीआर के लिए रखी है, लेकिन लोग खुद तय करें कि उनके शहर के लिए क्या ठीक है? धूल के गुबार के बीच पटाखों के धुएं से शहर का क्या हाल होगा, यह सभी को सोचना पड़ेगा। अगर आप प्रदूषण नियंत्रण मंडल जैसी उन संस्थाओं के भरोसे बैठे हैं तो भूल जाइए कि प्रदूषण थमेगा। जो संस्था प्रदूषण मापने के लिए सही जगह पर मशीन नहीं लगा पाती, उसपर यकीन करना बेमानी है।