सच्चाई यह है कि एक दिन मेरा बच्चा भी बड़ा होकर खेलेगा। मैं बच्चों के खेल के खिलाफ नहीं हूं। बस… इतना चाहती हूं कि बच्चे खेल के मैदान पर खेले, लेकिन पालकों की दबंगई की वजह से डर गई हूं। पालकों के व्यवहार से ऐसा लग रहा है कि वे मेरे उस बच्चे को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं जिसने अभी दुनिया में आंखे ही नहीं खोली है।’
यह एक खत का अंश है, जिसे राज्यपाल को लिखा है ऋषभ सिटी प्राइम आदर्श नगर
दुर्ग में रहने वाली मोनिका देवांगन ने। मोनिका का कहना है कि एक से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्टेडियम है जहां पर छोटे-बड़े सभी बच्चे क्रिकेट व फुटबॉल खेल सकते हैं, लेकिन कॉलोनी के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व कारोबारी पालक इस जिद पर अड़ गए हैं कि बच्चे तो कालोनी में ही खेलेंगे। पालकों का प्रश्रय पाकर बच्चे भी बार-बार गेंद को उनके घर पर फेंकते हैं।
मोनिका के मुताबिक कालोनी में बेहद छोटे बच्चे और वयोवृद्ध भी रहते हैं। क्रिकेट और फुटबॉल के शाॉट मारने वाले खेल से उन्हें भी चोट लग सकती है, लेकिन राजनीति और पैसों की धौंस दिखाने वाले पालक कुछ भी समझने को तैयार नहीं है। मोनिका का कहना है कि फुटबॉल से लगी चोट की वजह से उसका पूरा शरीर सूज गया है
और अजन्मे बच्चे पर बुरा असर पड़ रहा है।
पालक कर रहे हैं अपराध
हमारे यहां गोद भराई की रस्म इसलिए होती है कि अगर महिला खुश रहेगी तो पेट में पल रहा बच्चा भी खुश रहेगा। फिलहाल गर्भवती महिला के साथ पालकों का व्यवहार अपराध की श्रेणी में आता है। अगर बच्चा कम वजन का पैदा हुआ या फिर कोई अनहोनी हो गई तो कौन जिम्मेदार होगा? जहां तक बच्चों के खेल का संबंध है तो जाहिर सी बात है कि जब तक खेल के मैदान सिकुड़ते रहेंगे तब तक यह स्थिति कायम रहेगी।
कालोनियों में खेल का मैदान और गार्डन अलग ही होना चाहिए, लेकिन जो कालोनी बनाता है वह पैसों की लालच में खेल के मैदान और गार्डन को बेच देता है। फिलहाल महिला और उसके बच्चे को बचाने के लिए जरूरी पहल होनी चाहिए। आखिरकार बच्चा देश का भविष्य है।
सोनिया परियल, ( समाजशास्त्री/ मनोविज्ञानी रायपुर)