मुक्ताकाश शैली में गोदान
वरिष्ठ रँगकर्मी मिर्ज़ा मसूद ने बताया, मैंने प्रेमचंद पर काफी काम किया है।इसमें सबसे महत्वपूर्ण है मुक्ताकाश शैली में गोदान की प्रस्तुति। उनके नाटक जमीन से जुड़े होते हैं जो सीधे आम लोगों तक पैठ बनाते हैं।रूढ़िवादिता पर प्रहार
रंगकर्मी रचना मिश्रा कहती हैं, हमने उनके लिखे नमक का दरोगा, कफ़न, लांछन और गोदान का कुछ पार्ट मंचित किया है। अपनी रचना ‘गबन’ के जरिए से एक समाज की ऊंच-नीच, ‘निर्मला’ से एक स्त्री को लेकर समाज की रूढ़िवादिता और ‘बूढी काकी’ के जरिए ‘समाज की निर्ममता’ को जिस अलग और रोचक अंदाज उन्होंने पेश किया, उसकी तुलना नही है। इसी तरह से पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े भाईसाहब, आत्माराम, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कहानियों से प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य की जो सेवा की है, वो अद्भुत है।मेरी फिल्मों में प्रेमचंद की छाप
फ़िल्म डायरेक्टर सतीश जैन कहते हैं, एक वक्त था मैंने प्रेमचंद को खूब पढ़ा है। नतीजतन मेरी हर एक फ़िल्म में उनकी छाप नजर आती है। प्रेमचंद की कहानियों के किरदार आम आदमी होते हैं। उनकी कहानियों में आम आदमी की समस्याओं और जीवन के उतार-चढ़ाव को दिखाया गया है।