इस फ्लक्चुएशन ने वायदा बाजार में सौदा करने वालों की दिल धड़कनें तो बढ़ा ही दी हैं, अपने सपनों का घर बना रहे लोगों की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। वो इसलिए क्योंकि लोग एक बजट बनाकर मकान बनाने की तैयारी करते हैं। कीमतें बढ़ने से बजट में भी बड़ा अंतर आ जाता है। बता दें कि अभी सरिया के दाम 58 हजार रुपए प्रति टन के करीब हैं। लगभग 5 दिन पहले इसकी कीमत 56 हजार रुपए प्रति टन तक पहुंच गई थी।
मार्च 2021 के बाद पहली बार सरिया इतना सस्ता हुआ था। हालांकि, 2-4 दिन में ही दाम रिकवर होते हुए 58 हजार रुपए प्रति टन तक पहुंच गया है। जबकि, खुले में इसकी कीमतें 60 से 65 रुपए प्रति किलो तक हो गई है।जानकारों की मानें तो किसी भी सेक्टर में 4 से 5 प्रतिशत तक फ्ल्क्चुएशन होना आम बात है, लेकिन सरिया के मामले में यह कभी 20 प्रतिशत तक बढ़ जाता है तो कभी 10 प्रतिशत तक घट जाता है। छड़ के दाम में अप्रत्याशित रूप से बदलाव दिसंबर 2020 के बाद देखने को मिला।
सिविल इंजीनियर क्षितिज गुप्ता ने कहा, लोग अपने बजट के हिसाब से घर बनाते हैं। छड़ की कीमतें बढ़ने से घर बनाने का बजट भी बढ़ जाता है। कई बार लोग इस बात को नहीं समझते। इसके चलते कई ठेकेदारों और इंजीनियरों से विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है।
लोहा कारोबारी आदित्य धनवानी ने कहा, सीमेंट के भाव स्थिर हैं, जबकि सरिया के दामों में लगातार उठापटक जारी है। बीते कुछ महीनों के मुकाबले छड़ की कीमतें कम हुई हैं, लेकिन 2020 के बाद जिस तेजी से इसके दाम बढ़े, उसके मुकाबले कीमत कम नहीं हुए हैं।
1. चीन से लोहे के आयात पर प्रतिबंध ने बढ़ा दी मुश्किल
भारत में चीन से बड़ी मात्रा में लौह अयस्क इंपोर्ट किया जाता था। जून 2020 में चीनी सामानों के आयात पर प्रतिबंध लगने के साथ ही सरिया के दामों में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी देखने को मिली। कारोबारियों की मानें तो मौजूदा स्थिति में छड़ की कीमतें 58 हजार रुपए प्रति टन के करीब हैं। यदि चीन से लौह अयस्क का इंपोर्ट शुरू हो जाए तो कीमतें दिसंबर 2020 के समान 40-45 हजार रुपए प्रति टन के करीब पहुंच सकती हैं।
2. कमोडिटी बाजार में डिमांड बढ़ने और घटने का प्रभाव
कमोडिटी बाजार में जैसे ही लोहे की डिमांड बढ़ती है, स्थानीय बाजार में सरिया के दाम आसमान छूने लगते हैं। इसी के चलते मार्च 2022 में छड़ अपने रेकॉर्ड स्तर 80 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गया था। वहीं अगर किन्हीं कारणों से कमोडिटी एक्सचेंज में इसकी डिमांड घटती है तो बाजार में छड़ के रेट कम हो जाते हैं। जैसा 4 दिन पहले हुआ था जब छड़ 56 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गया था। जानकारों की मानें तो बड़े ब्रोकर्स छड़ की कीमतों को प्रभावित करते हैं।
3. कोयले की आपूर्ति प्रभावित होने के चलते भी बढ़ी कीमतें
कोरोनाकाल के दौरान कोयले की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई। 2 सालों के भीतर छड़ की कीमतें एकाएक बढ़ने की यह भी एक बड़ी वजह है। कारोबारियों ने बताया कि कोयला नहीं मिलने के चलते प्लांट्स में बिजली से काम किया गया। चूंकि बिजली महंगी पड़ती है इसलिए मैनुफैक्चुरिंग कॉस्ट भी बढ़ा और सरिया के दाम भी। हालांकि, कोयला आपूर्ति सामान्य होने के बाद कोयले के दाम भी बीते कुछ महीनों के मुकाबले 20 से 24 रुपए तक कम हुए हैं।