फिर राजस्व अभिलेखों को दुरुस्त किया जाना है। उसके बाद राजस्व विभाग उस जमीन का कब्जा लेगा और मूल भूस्वामियों अथवा उनके उत्तराधिकारियों को जमीन लौटाने का असल काम शुरू करेगा। तहसीलदार अलग-अलग प्रकरण पंजीबद्ध किए करेंगे।
उसके बाद तहसीलदार ही मूल भूस्वामी अथवा उनके उत्तराधिकारी के नाम से राजस्व अभिलेख सुधारने का आदेश पारित करेंगे। अभिलेखों में नाम दर्ज हो जाने के बाद किसानों को उनकी जमीन का कब्जा दे दिया जाएगा।भूपेश मंत्रिमंडल ने 25 दिसम्बर को बस्तर जिले के 10 गांवों के किसानों की निजी जमीन वापस करने का फैसला किया था।
2008 में हुआ था अधिग्रहण : टाटा इस्पात संयंत्र के लिए ये भूमि फरवरी और दिसम्बर 2008 में अधिगृहीत की गई थी, लेकिन कंपनी ने वहां उद्योग नहीं लगाया। इसके साथ ही वहां के प्रभावित किसान राज्य सरकार से अपनी भूमि वापस दिलाने की मांग लम्बे समय से कर रहे थे।
1707 किसानों की जमीन
इस आदेश से 10 गांवों के 1707 किसानों को फायदा होगा। उनकी 1764 एकड़ से अधिक जमीन अधिग्रहण के जद में आई थी। जिन गांवों के किसानों को उनकी भूमि वापस मिलेगी, वह बड़ांजी, बड़ेपरोदा, बेलर, बेलियापाल, छिन्दगांव, दाबपाल, धुरागांव, कुम्हली, सिरिसगुड़ा और टाकरागुड़ा है।