वहीं, 10 प्रतिशत शोधार्थी एेसे हैं जिन्हें फिर से पंजीयन करना पड़ता है। कभी गाइड न मिलने तो कभी शोधार्थी द्वारा प्रोजेक्ट रिपोर्ट जमा करने में देरी की वजह से वे कोर्स में पिछड़ रहे हैं। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में इस बार पीएचडी की 143 सीटें हैं। दुर्ग विश्वविद्यालय के अलग होने के बाद यहां सीटें घटी हैं। पिछले साल यहां पीएचडी के लिए करीब 700 से 800 सीटें थीं।
तीन साल से पहले पीएचडी नहीं : पीएचडी को लेकर रेगुलेशन 2016 के अनुसार पीएचडी के लिए कम से कम तीन साल जरूरी है। इससे पहले पीएचडी पूरी नहीं होगी। अधिकतम छह वर्ष में पीएचडी पूरा करना जरूरी है। जबकि, वर्तमान समय में चल रहे रेगुलेशन 2009 के अनुसार न्यूनतम अवधि दो साल और अधिकतम समय चार साल का था, जिसमें एक साल एक्सटेंशन लेने के बाद यह पांच साल का होता था। नए नियम आने के बाद अब यह पांच वर्ष और एक्सटेंशन लेने के बाद छह साल में पूरा करना होगा।
प्रोफेसर के पास सीटें : यूजीसी की गाइडलाइन के बाद अब असिस्टेंट प्रोफेसर के पास चार सीटें, एसोसिएट के पास 6 और प्रोफेसर के पास 8 सीटें रहेंगी। जिनमें शोधार्थी पीएचडी की उपाधि ले सकेंगे। 6 माह में करानी होती है जांच : शोधार्थी को हर ६ माह में थिसिस की जांच करवानी होती है। कुछ शोधार्थी तयशुदा अवधि में थिसिस की जांच नहीं करवा पाते हैं। इसके चलते वे शोध में पिछड़ जाते हैं और एक्सटेंशन लेना पड़ता है।