पेट पालने की जद्दोजहद बस्तर में हर साल लोगों को मौत के मुहाने पर ले जाती है। कई लोग इसी फेर में अपनी जान भी गवां बैठते हैं। जबकि कई मौत से जीतकर अगले संघर्ष के लिए जुट जाते हैं। यह सिलसिला बदस्तूर चलता रहता है। हर साल नावें डूबती हैं। लोग बचते-मरते हैं, यह इंद्रावती के किनारे बसे आदिवासियों की नियति बन गई है। हाल ही में दंतेवाड़ा के बारसूर इलाके के मुचनार घाट में इंद्रावती की तेजधार में नाव के अनियंत्रित होकर पलटने से दो महिलाओं की मौत हो गई। नाव में सवार अन्य लोग किसी तरह किनारे पहुंचकर अपनी जान बचाई। बस्तर में इंद्रावती नदी ३८६ किमी बहती है। इसके किनारे बसे सवा दो सौ गांवों के लाखों लोगों में से ज्यादतर लोगों को नाव का ही सहारा है। हर साल उफनती इंद्रावती में लोगों की जल समाधि के सिलसिले पर रोक लगाने बीते साल केंद्र सरकार के रुरल कनेक्टिविटी प्लान के तहत इंद्रावती पर पुल बनाने की योजना बनी थी। इसके साथ ही राज्य सरकार ने इंद्रावती नदी पर छिंदनार के नजदीक पाहुरनार और बड़ेकारका में करीब ८२ करोड़ की लागत से दो नए पुल बनाने का खाका तैयार किया था। इससे नदी पार के ४० गांव के लोगों को फायदा होता। पर यह योजना कागजों तक ही सिमट कर रह गई। अबूझमाड़ के दर्जनों गांवों के लोग आज भी इंद्रावती नदी पार तुमनार और गीदम पहुंचते हैं। इस इलाके में तैनात सरकारी अमले को भी छोटी नाव का ही सहारा है। जो पेड़ के साबूत तने को छिलकर बनाई जाती है। इसके जरिए नदी की तेजधार पार करना काफी जोखिम भरा होता है। कई दफे डोंगी पर क्षमता से अधिक लोग सवार हो जाते हैं। जो कि हादसे का सबस बनता है। हर हादसे के बाद इलाके में पक्के घाट बनवाने और आधुनिक मोटर बोट मुहैय्या करवाने की बात बड़े जोरशोर से उठती है। जो कुछ ही दिनों बाद भूला दी जाती है। साल दर साल होने वाले हादसों के बावजूद जनप्रतिनिधि इस ओर आंखें मूंदे हुए होते हैं। लिहाजा प्रशासन इस पर अंकुश लगाने कोई ठोस कदम नहीं उठाता। बहरहाल, मौत के इस सफर पर लगाम लगाने प्रशासन को इस ओर संवेदनशील होकर कारगर कदम उठाना होगा।