फॉरेन ट्रेड से एमबीए, शिपिंग कंपनी में थी जॉब
मैंने करीब 5 साल तक दिल्ली, नागपुर, इंदौर और रायपुर में शिपिंग एंड लॉजिस्टिक कंपनी में जॉब की। चूंकि मेरी फैमिली किसान है। इसलिए मैंने सोचा कि इसी में कुछ नया करना चाहिए। हम कम लागत और बंजर भूमि में खेती करना चाह रहे थे। मकसद था कि लोगों तक प्योर कंटेंट पहुंचा पाएं। वाष्पीकरण प्रक्रिया से लिक्विड तैयार करते हैं। अगर कोई इस काम को करना चाहे तो लगभग 3 साल लगेंगे, लेकिन शार्टकर्ट करना है तो केमिकल का यूज करना होगा और ग्राहकों को सच्चाई का पता लगते देर नहीं होती।ये रही चुनौती
हर कोई इंपोर्टेंट फ्रेग्रेंस यूज करता है, जो कि सिंथैटिक है। केमिकल निकालकर उसे नैचुरल तरीके से लोगों तक पहुंचाना, कास्ट कटिंग करना और ग्राहकों को कन्वेंस करना हमारे लिए चुनौती थी, ये अभी खत्म नहीं हुई है। प्रोडक्ट को तैयार करने के लिए आइडिया मार्केट से मिला। लोगों से मिलते-जुलते रहे इसका भी फायदा हुआ। इंदिरा गांधी कृषि विवि से लैब और लैब तकनीशियन का अहम रोल रहा।
मिट्टी की नमी के हिसाब से होगी सिंचाई
इंदिरा गांधी कृषि विवि ने एक ऐसी मशीन ईजाद की है जिसके जरिए मिट्टी की नमी को सेंसर कैच करेगा और ड्रिप सिंचाई होगी। कृषि मेले में इस मशीन की पूछपरख होती रही। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के सीनियर साइंटिस्ट डॉ धीरज खल्को ने बताया, सॉइल माइश्चर सेंसर बेस ऑटोमेटेड एरिगेशन सिस्टम पर डेढ़ साल से रिसर्च चल रहा था। जल्द ही हम इस टेक्नोलॉजी को मार्केट में लाएंगे। इसके लिए कंपनियों को इनवाइट करेंगे। इस मशीन से पानी की बचत तो होगी, एक्चुअल रिक्वायरमेंट का भी पता चलेगा।