अगले सप्ताह 9 अक्टूबर को कांग्रेस की प्रदेश की निर्वाचन अधिकारी और सांसद रजनी पाटिल एक बैठक लेने वाली हैं। इस बैठक में प्रदेश कार्यकारिणी और समन्वय समिति के लोग शामिल होंगे। बताया जा रहा है कि इस बैठक में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की जिम्मेदारी राष्ट्रीय अध्यक्ष को देने संबंधी एक प्रस्ताव पारित किया जाना है। एेसा सभी राज्यों में हो रहा है। हालांकि, कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष ज्ञानेश शर्मा कह रहे हैं, कि संगठन चुनाव पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक ही होने हैं। इसमें थोड़ा फेरबदल आंदोलनों में व्यस्तता के चलते हुआ है। इसकी भी अनुमति केंद्रीय निर्वाचन प्राधिकरण से ली गई है। तय कार्यक्रम के मुताबिक ४ सितम्बर तक ब्लॉक समिति अध्यक्षों और १५ सितम्बर तक जिला कांग्रेस अध्यक्षों का चुनाव हो जाना था।
भूपेश बघेल मौजूदा अध्यक्ष भूपेश बघेल को फिर से जिम्मेदारी मिलने की संभावना ज्यादा है। पिछले पौने चार वर्षों में बघेल ने सरकार पर तीखे हमले किए हैं। संगठन को नए सिरे से सक्रिय किया और बिखराव के बाद पार्टी के धड़ों को कुछ हद तक एक रखने में कामयाब रहे हैं।
मजबूत पक्ष : प्रदेश में कांग्रेस का जाना पहचाना चेहरा हैं। सर्वाधिक वोटरों वाले ओबीसी वर्ग से आते हैं। सरकार के खिलाफ आक्रामक होकर माहौल बनाया है। राहुल गांधी खुद घोषित कर चुके हैं कि अगला चुनाव भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।
मजबूत पक्ष : प्रदेश में कांग्रेस का जाना पहचाना चेहरा हैं। सर्वाधिक वोटरों वाले ओबीसी वर्ग से आते हैं। सरकार के खिलाफ आक्रामक होकर माहौल बनाया है। राहुल गांधी खुद घोषित कर चुके हैं कि अगला चुनाव भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।
ताम्रध्वज साहू
मोदी लहर में भी कांग्रेस के पंजे पर लोकसभा गए ताम्रध्वज साहू अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार बताए जा रहे हैं। इसको लेकर वे दिल्ली में भी अपनी मंशा जता चुके हैं। कहा जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व में एक धड़ा उनकी दावेदारी का समर्थन भी कर रहा है।
मोदी लहर में भी कांग्रेस के पंजे पर लोकसभा गए ताम्रध्वज साहू अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार बताए जा रहे हैं। इसको लेकर वे दिल्ली में भी अपनी मंशा जता चुके हैं। कहा जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व में एक धड़ा उनकी दावेदारी का समर्थन भी कर रहा है।
मजबूत पक्ष : पिछड़ा वर्ग मेंं साहू समाज सबसे बड़ा मतदाता है। करीब 25 लाख की आबादी इस समुदाय की है। इनमें से आधे लोगों को भाजपा और संघ समर्थक माना जाता है। साहू के बहाने इस समुदाय में कांग्रेस अधिक मजबूत होने की कोशिश करेगी। इनकी छवि अब तक अविवादित रही है।
कमजोर पक्ष : साहू की पहचान बेहद सीमित है। दुर्ग-रायपुर के अलावा प्रदेश के दूसरे हिस्से में उनका नाम और काम पहीचानने वाले बेहद कम लोग हैं। संगठन में कई धड़े उनको पचा पाने की स्थिति में नहीं हैं।
पीसीसी प्रतिनिधियों का नाम पहले
पार्टी सूत्रों का कहना है कि सर्वसम्मति नहीं बन पाने की वजह से फेरबदल तो हुआ है। ब्लॉक और जिला अध्यक्षों का नाम केंद्रीय निर्वाचन प्राधिकारी को भेज दिया गया है। लेकिन पीसीसी प्रतिनिधियों का ही नाम पहले घोषित होगा। इन्हीं लोगों को राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्वाचन में भाग लेना है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि सर्वसम्मति नहीं बन पाने की वजह से फेरबदल तो हुआ है। ब्लॉक और जिला अध्यक्षों का नाम केंद्रीय निर्वाचन प्राधिकारी को भेज दिया गया है। लेकिन पीसीसी प्रतिनिधियों का ही नाम पहले घोषित होगा। इन्हीं लोगों को राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्वाचन में भाग लेना है।