scriptचमत्कारी है यह 2000 साल पुराना मंदिर, दर्शन मात्र से पूरी होती मनोकामना | Raipur: 2000 yr old temple fulfills all wishes of devotees | Patrika News

चमत्कारी है यह 2000 साल पुराना मंदिर, दर्शन मात्र से पूरी होती मनोकामना

locationरायपुरPublished: Oct 06, 2016 01:55:00 pm

प्राकृतिक रूप से चारों ओर से पहाड़ों में घिरे डोंगरगढ़ की सबसे ऊंची पहाड़ी पर मां का मंदिर स्थापित है। हर दिन मां के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु मां के दर्शन को आते हैं।

2000 yr old temple

2000 yr old temple fulfills all wishes of devotees

रायपुर. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 75 किलोमीटर दूर राजनांदगांव जिले के डोगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी देवी का दरबार है। यहां हर साल हर साल नवरात्रि के मौके पर बड़ा मेला लगता है। हजार से ज्यादा सीढिय़ां चढ़कर हर दिन मां के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु मां के दर्शन को आते हैं। मां से मनोकामना मांगते हैं और मां सबकी मनोकामना पूरी भी करती हैं।

नीचे बड़ी मां का मंदिर पहाड़ी पर छोटी मां
डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी के दो मंदिर हैं। एक मंदिर पहाड़ी के नीचे है और दूसरा पहाड़ी के ऊपर। पहाड़ी के नीचे के मंदिर को बड़ी बमलई का मंदिर और पहाड़ी के नीचे के मंदिर को छोटी बमलई का मंदिर कहा जाता है।

maa bamleshwari devi























यहां कई किवदंतियां
– वैसे तो मां बम्लेश्वरी के मंदिर की स्थापना को लेकर कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है पर जो तथ्य सामने आए हैं उसके मुताबिक उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को मां बगलामुखी ने सपना दिया था और उसके बाद डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर कामाख्या नगरी के राजा कामसेन ने मां के मंदिर की स्थापना की थी।

dongargarh temple























– एक कहानी यह भी है कि राजा कामसेन और विक्रमादित्य के बीच युद्ध में राजा विक्रमादित्य के आव्हान पर उनके कुल देव उज्जैन के महाकाल कामसेन की सेना का विनाश करने लगे और जब कामसेन ने अपनी कुल देवी मां बम्लेश्वरी का आव्हान किया तो वे युद्ध के मैदान में पहुंची।

dongargarh temple in rajnandgaon























– उन्हें देखकर महाकाल ने अपने वाहन नंदी से उतरकर मां की शक्ति को प्रणाम किया और फिर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ। इसके बाद भगवान शिव और मां बम्लेश्वरी अपने-अपने लोक को विदा हुए। इसके बाद ही मां बम्लेश्वरी के पहाड़ी पर विराजित होने की भी कहानी है।

maa bamleshwari devi temple























– यह भी कहा जाता है कि कामाख्या नगरी जब प्रकृति के तहत नहस में नष्ट हो गई थी तब डोंगरी में मां की प्रतिमा स्व विराजित प्रकट हो गई थी। सिद्ध महापुरुषों और संतों ने अपने आत्मबल और तत्व ज्ञान से यह जान लिया कि पहाड़ी में मां की प्रतिमा प्रकट हो गई है और इसके मंदिर की स्थापना की गई।

– इस मंदिर की स्थापना को लेकर एक और कहानी प्रचलित है। बताया जाता है कि लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व कामाख्या नगरी में राजा वीरसेन का शासन था। वे नि:संतान थे। संतान की कामना के लिए उन्होंने मां भगवती और शिवजी की उपासना की। इसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वीरसेन ने पुत्र का नाम मदनसेन रखा। मां भगवती और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए राजा ने मां बम्लेश्वरी मंदिर का निर्माण कराया था।

आते हैं लाखों श्रद्धालु
प्राकृतिक रूप से चारों ओर से पहाड़ों में घिरे डोंगरगढ़ की सबसे ऊंची पहाड़ी पर मां का मंदिर स्थापित है। पहले मां के दर्शन के लिए पहाड़ों से ही होकर जाया जाता था लेकिन कालांतर में यहां सीढियां बनाई गईं और मां के मंदिर को भव्य स्वरूप देने का काम लगातार जारी है। पूर्व में खैरागढ़ रियासत के राजाओं द्वारा मंदिर की देखरेख की जाती थी। बाद में राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने ट्रस्ट का गठन कर मंदिर के संचालन का काम जनता को सौंप दिया।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो