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डॉक्टरों ने सस्ती दवाएं लिखनी बंद की तो सरकारी सूची से हट गईं 300 दवाएं

locationरायपुरPublished: Sep 05, 2016 02:14:00 pm

फार्मा कंपनियों के दबाव में डॉक्टरों ने ये दवाएं लिखनी बंद कर दीं, तो
इन्हें सरकारी लिस्ट से भी बाहर कर दिया गया। कटौती के
बाद अब 450 प्रकार की दवाएं ही अस्पतालों में रहेंगी।

Doctors write off cheaper drugs

Doctors write off cheaper drugs

नारद योगी/रायपुर. स्वास्थ्य विभाग ने सरकारी अस्पतालों की आवश्यक दवाओं में कटौती कर दी है। इसमें से करीब 300 दवाओं को हटा दिया गया है। फार्मा कंपनियों के दबाव में डॉक्टरों ने ये दवाएं लिखनी बंद कर दीं, तो इन्हें सरकारी लिस्ट से भी बाहर कर दिया गया। पहले आवश्यक दवाओं की सूची में 750 दवाएं, इंजेक्शन व सर्जिकल आइटमों को शामिल किया गया था। कटौती के बाद अब 450 प्रकार की दवाएं ही अस्पतालों में रहेंगी। पहले डॉक्टरों को पर्ची में इन्हीं दवाओं को लिखना अनिवार्य था। ये दवाएं मरीजों को मुफ्त मिलती हैं। सूची से हटाई गई दवाओं में एंटीबॉयोटिक से लेकर दर्द निवारक जैसी औषधियां शामिल हैं।

तीन साल बाद सूची में किया बदलाव
वर्ष 2013 में अस्पतालों में मरीजों को दी जाने वाली दवाओं में समरूपता लाने के लिए आवश्यक दवा सूची बनाई गई थी। इसमें करीब 750 दवाओं व सर्जिकल आइटम को शामिल किया था। दो साल बाद समीक्षा के बाद सूची में बदलाव किया गया है।

निजी मेडिकल स्टोर पर बढेग़ी निर्भरता
तीन सौ दवाओं के हटने से ईडीएल में दवाओं की संख्या कम हो गई है। इससे मरीजों को उन दवाओं के लिए निजी मेडिकल स्टोर पर निर्भर होना पड़ेगा। इसे मरीजों की परेशानी और बढ़ जाएगी।

सीजीएमएससी के एमडी वी रामा राव ने कहा कि वर्ष 2016 के लिए ईडीएल की नई सूची बनी है। इसमें कुछ दवाओं को कम किया गया है। सूची विशेषज्ञों की समिति के निर्णय के आधार पर बनाई गई। सरकारी अस्पतालों के लिए नई सूची के आधार पर ही दवाओं की खरीदी होगी।

ईडीएल से हटाए गई कुछ प्रमुख दवाएं
डेफेरासिराक्स-एनीमिया व खून संबंधी रोगों में उपयोगी
मिडाजोलाम इंजेक्शन-एनीस्थिशिया व अन्य समस्याओं के लिए
लोराजेपाम-नवजातों के लिए उपयोगी
वालप्रोइक एसिड-मिर्गी बीमारी के लिए
सेपेडॉक्सीम-एंटीबॉयोटिक के रूप में उपयोगी
पैरासिटामॉल-बुखार
डायक्लोफेंक-आक्रमकतारोधी, दर्द निवारक

इसलिए हटाईं गईं
– डॉक्टरों द्वारा मरीजों के लिए इन दवाओं का उपयोग न करना
– फार्मा कंपनियों की ओर से दूसरी दवाएं सप्लाई करने पर जोर
– अस्पतालों में दवाओं की खपत कम होना
– संबंधित दवा का उपयोग करने वाले मरीजों की संख्या में गिरावट
– सीजीएमएससी की टेंडर प्रक्रिया में बदलाव
– कुछ कंपनियों की दवाओं का ब्लैकलिस्टेड होना
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