शहर में ऐसे कई लोग है जो दूसरे की मदद के लिए तत्पर रहते हैं या फिर किसी के ड्रीम को पूरा करने में मदद करते हैं। वहीं आज तकनीक का जमाना है और सोशल मीडिया सबसे बेहतरीन विकल्प है किसी भी जगह आसानी से पहुंचने का। इसी को देखते हुए राजधानी के कुछ ग्रुप ने फेसबुक पर ग्रुप बनाए हैं जो दूसरो की मदद करने का काम कर रहे हैं।
इनमें कोई बच्चों और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की पढ़ाई का जिम्मा उठाए है तो कोई हेल्थ फील्ड से जुड़ी चीजों को अपने ग्रुप में अपडेट करता है तो वहीं कोई स्लम एरिया में रहने वाले लोगों और बच्चों की मदद करने में आगे आता है। वे सभी ग्रुप में पोस्ट के माध्यम से जानकारी लेते हैं और मदद करते हैं। तो आइए जानते हैं कुछ ऐसे ग्रुप के बारे में जो लोगों की जिंदगी में मसीहा बनकर सामने आ रहे हैं।
तीन साल पहले की शुरूआत
राजधानी के रहने वाले आलोक शर्मा ने आवाज- द वॉइस ऑफ सिटीजंस नाम का ग्रुप बनाया है जो फेसबुक पर भी अवेलेबल है। पांच लोगों से शुरू किए गए इस ग्रुप में आज करीब सौ मेंबर्स हैं। आलोक बताते हैं कि वे इसके माध्यम से स्लम एरिया में रहने वाले गरीब और असहाय बच्चों की मदद करते हैं। इसमें वे पढ़ाई से लेकर उनके रहने-खाने का सामान उपलब्ध कराते हैं। उनका कहना है कि एक बार वे कहीं जा रहे थे तब एक बच्चा दिखाई दिया जिसक पास स्कूल बैग नहीं था उसके पास जाकर देखा तो बैग की वजह पूछी। तब लगा कि शहर में ऐसे कई बच्चे होंगे जो आर्थिक तंगी की वजह से पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं तब उनके लिए यह ग्रुप बनाया। हम सभी स्लम एरिया में जाकर वहां के बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा लेते हैं तथा हर रविवार उन्हें पढ़ाते हैं। यह सिलसिला पिछले तीन वर्षों से जारी है।
राजधानी के रहने वाले आलोक शर्मा ने आवाज- द वॉइस ऑफ सिटीजंस नाम का ग्रुप बनाया है जो फेसबुक पर भी अवेलेबल है। पांच लोगों से शुरू किए गए इस ग्रुप में आज करीब सौ मेंबर्स हैं। आलोक बताते हैं कि वे इसके माध्यम से स्लम एरिया में रहने वाले गरीब और असहाय बच्चों की मदद करते हैं। इसमें वे पढ़ाई से लेकर उनके रहने-खाने का सामान उपलब्ध कराते हैं। उनका कहना है कि एक बार वे कहीं जा रहे थे तब एक बच्चा दिखाई दिया जिसक पास स्कूल बैग नहीं था उसके पास जाकर देखा तो बैग की वजह पूछी। तब लगा कि शहर में ऐसे कई बच्चे होंगे जो आर्थिक तंगी की वजह से पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं तब उनके लिए यह ग्रुप बनाया। हम सभी स्लम एरिया में जाकर वहां के बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा लेते हैं तथा हर रविवार उन्हें पढ़ाते हैं। यह सिलसिला पिछले तीन वर्षों से जारी है।
मूकबाधिर बच्चों का संवार रहे भविष्य राजधानी के राकेश ठाकुर ने सामथ्र्य नाम से एक ग्रुप बनाया है जिसमें वे मूकबाधिर बच्चों को एक मुकाम देने की कवायद कर रहे हैं। वे फेसबुक पर ग्रुप को बनाए हैं तथा एक संस्था भी कुशालपुर में खोले हुए हैं। वे ऐसे बच्चों के लिए मसीहा बने हुए हैं जो बोल और सुन नहीं सकते। वे साइन लैंग्वेज के जरिए बच्चों को कंप्यूटर आदि का ज्ञान देते हैं और प्लेसमेंट भी आयोजित कराते हैं। राकेश के यहां से करीब 20 बच्चे आज जॉब कर रहे हैं और स्टार्टअप भी कर रहे हैं।
सड़क सुरक्षा का लिया जिम्मा
राजधानी के संदीप धुप्पड़ का मिशन संभव ग्रुप यानि सुरक्षित भव: फाउंडेशन सड़क सुरक्षा संबंधी जानकारियों को लोगों तक पहुंचाने का जिम्मा लिया है। उन्होंने मिशन संभव के माध्यम से ट्रेफिक से रिलेट सभी जानकारी को लोगों तक पहुंचाते हैं। अगर आपने शहर के चोक-चौराहों पर यातायात संबंधी ऑडियो सुनें हो तो यह संदीप के ग्रुप का ही काम है। वे इसके अलावा समस्त जागयक अभियान जैसे बेटी बचाओ, पर्यावरण सरंक्षण, शिक्षा और समाज की कुप्रथाओं के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं। इसके अलावा वीडियो क्लिप बनाकर यातायात से रिलेट चीजों को सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं। मिशन संभव की शुरूआत जुलाई 2013 में हुई थी जो अभी तक प्रदेश के दस शहरों में पहुंच चुकी है।
राजधानी के संदीप धुप्पड़ का मिशन संभव ग्रुप यानि सुरक्षित भव: फाउंडेशन सड़क सुरक्षा संबंधी जानकारियों को लोगों तक पहुंचाने का जिम्मा लिया है। उन्होंने मिशन संभव के माध्यम से ट्रेफिक से रिलेट सभी जानकारी को लोगों तक पहुंचाते हैं। अगर आपने शहर के चोक-चौराहों पर यातायात संबंधी ऑडियो सुनें हो तो यह संदीप के ग्रुप का ही काम है। वे इसके अलावा समस्त जागयक अभियान जैसे बेटी बचाओ, पर्यावरण सरंक्षण, शिक्षा और समाज की कुप्रथाओं के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं। इसके अलावा वीडियो क्लिप बनाकर यातायात से रिलेट चीजों को सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं। मिशन संभव की शुरूआत जुलाई 2013 में हुई थी जो अभी तक प्रदेश के दस शहरों में पहुंच चुकी है।