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वादा न भूलें, ना ही भूलने दें

locationरायपुरPublished: Dec 03, 2018 09:07:01 pm

Submitted by:

Gulal Verma

आम लोग ठान लेंगे तो सारी बाधाएं हो जाएंगी दूर

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वादा न भूलें, ना ही भूलने दें

मतदान के बाद न सिर्फ आमजन, बल्कि राजनीतिक दल भी अपने-अपने नजरिए से चुनाव परिणाम को लेकर कयास लगा रहे हैं। क्योंकि, पार्टियों ने सभी वर्गों की झोली भरने का वादा किया है। विशेषकर किसानों के लिए कई बड़ी-बड़ी घोषणाएं की गई हैं। ऐसे में जो पार्टी जीतेगी, जो सरकार बनाएगी, उसकी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाएगी। लेकिन जो लोग चुनाव हार जाएंगे या जीतने के बावजूद विपक्ष में बैठेंगे, उन्हें भी चुनाव में किए वादे याद रखने चाहिए। ऐसा नहीं कि विपक्ष में बैठकर अपने किए वादों को भूल जाएं। वे जनता को साथ लेकर विकास के लिए सरकार पर दबाव बना सकते हैं।
आज कम से कम इस बात को समझना होगा कि हमारा लोकतंत्र तेजी से कमजोर और भ्रष्ट होता जा रहा है। और इसकी वजह है कि राजनीतिक दल प्रत्याशी चयन और मतदाता वोट करते समय धर्म, जाति, समुदाय, समाज, परिवार, स्वार्थ और लालच के आगे समर्पण कर देते हैं। इतना ही नहीं, राजनीतिक दलों ने तो ‘घोषणा-पत्रÓ को चुनाव जीतने का मुख्य हथियार बना लिया है। चुनाव के मौसम में नेतागण मतदाताओं को तरह- तरह के प्रलोभन देते हैं। जनता भी मौके का फायदा उठाना चाहती है। बहते पानी में हाथ धो लेना चाहती है। इसलिए नई मांग उठाती है।
अफसोसनाक बात यह है कि लोकलुभावन वादे करने के पहले राजनीतिक दलों द्वारा देश-प्रदेश की आर्थिक स्थिति व संसाधनों की उपलब्धता पर ध्यान तक नहीं दिया जाता। जनता ‘गरीबी मिटाने का नारा हो या हर फिर हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपए डालने का वादाÓ यह जानते-समझते हुए भी सत्ता पर पहुंचा देती है। लेकिन सत्ता मिलते ही नेता ‘गजनीÓ की भांति सब वादे भूल गए। भूलने की यह आदत वर्षों से चला आ रही है।
चिंता की बात यह भी है कि सरकार द्वारा अपनी पार्टी को लाभ पहुंचाने वाली नीतियां बनाई जाती हंै। पार्टी की विचारधारा को थोपने और समाज की स्थायी विचाराधरा को बदलने की कोशिशें भी होती हैं। वैसे तो ज्यादातर समय जनता चुप ही रहती है। यदि चिल्लाती भी है तो उनकी आवाज सुनी नहीं जाती। इस तरह जिस जनता के लिए सरकार बनाई जाती है, उनसे ही किए वादे पूरे नहीं किए जाते। कई चुनाव हो चुके। कई सरकारें चली गईं। बावजूद जनता की स्थिति वही है। गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, बुनियादी साधन-सुविधाओं की समस्याएं दूर नहीं हुईं। स्वार्थ की राजनीति के चलते सरकारें अब तक मूकबधिर बनी हुई हैं।
आज के दौर में लोकतंत्र की मजबूती के लिए जनता की सेवा करने वाले जनप्रतिनिधियों का चयन ही एकमात्र विकल्प है। देश की जनता एक दिन राजनीति को साफ व स्वस्थ जरूर करेगी। लोकतंत्र को अपराधियों, स्वार्थियों और भ्रष्टाचारियों से मुक्ति अवश्य दिलाएगी। जब जनता ठान लेगी तो सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी। बिना कोशिश किए निराश हो जाना और हार मान लेना उचित नहीं होगा।
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