scriptलोकतंत्र के पर्व में मतदान कर गंगा में लगा ली डुबकी | rajnitik vyang | Patrika News

लोकतंत्र के पर्व में मतदान कर गंगा में लगा ली डुबकी

locationरायपुरPublished: Dec 05, 2018 08:17:10 pm

Submitted by:

Gulal Verma

मतदान करने वालों को सबसे ज्यादा मजा कब आता है? जब वे जिसे मतदान करते हैं और वह जीत जाता है।

cg news

लोकतंत्र के पर्व में मतदान कर गंगा में लगा ली डुबकी

छत्तीसगढ़ में विधानसभा के सभी 90 सीटों पर मतदान सम्पन्न हो गया। अब मतदाता ‘हमने मतदान कर लिया, समझो गंगा नहा लिया के आलम में है।Ó वैसे भी मतदान करने के बाद मतदाता को लोकतंत्र के प्रति अगले चुनाव तक वैराग्य सा उत्पन्न हो जाता है।
मतदान करने वालों को सबसे ज्यादा मजा कब आता है? जब वे जिसे मतदान करते हैं और वह जीत जाता है। इसीलिए मतदाता घंटों लाइन में खड़े होकर, काम-धंधा, नौकरी-चाकरी से छुट्टी लेकर मतदान करता है। मतदान नहीं करने वाले भी मजा लेते हैं। जो जीत जाता है उसे ही अपना प्रत्याशी कहते हैं और विजय जुलूस में घुस कर खूब मजा लेते हैं।
लोकतंत्र में यह भी होता है कि लापरवाह, कर्तव्यहीन, गैरजवाबदार मतदाताओं के मतदान नहीं करने का खमियाजा मतदान करने वाले कर्तव्यवान, जवाबदार लोगों को भुगतना पड़ता है। क्योंकि, कई बार कम मतदान से अयोग्य प्रत्याशी चुन लिए जाते हैं।
यही हाल चुनाव प्रचार का भी है। भ्रामक प्रचार, झूठे वादे, लालच व अच्छी भाषण शैली हमेशा सफलता नहीं देती। लोगों को बांटकर शासन करने वाले लोग आत्ममुग्ध और अतिविश्वासी होते हैं। लेकिन सत्य यह भी कि कथा, कहानी, प्रवचन, व्याख्यान सुन-सुन कर पले-बढ़े भारतीय अवचेतन पर भाषणों का प्रभाव भी कमतर नहीं आंका जा सकता है। वैसे भी भाषण वर्तमान में लिखा जा रहा साहित्य, कथा-कहानी ही है, जो भविष्य में पुराने आख्यानों की भांति याद किए जाएंगे।
मतदान करने से चूक जाने वाले मतदाताओं की स्थिति उन लोगों जैसी हो जाती है जो मेला खत्म होने के बाद पहुंचते हैं। कई लोग ऐसे होते हैं जो समय खत्म होने के बाद मतदान स्थल पर पहुंचते हैं। कई मतदाता तो मतदान करने तक यह नहीं सोच पाते कि उसे मतदान किसे करना है। कभी उसे इस पार्टी के किए काम अच्छे लगते हैं, कभी मन होता है कि इस बार दूसरे को जीता दें। इसी सोच-बिचार में उलझकर वह तय कर लेता है कि उसे तो मतदान ही नहीं करना। कई मतदाता तो उतने उत्साहित और जागरूक होते हैं कि किसी प्रत्याशी को वोट न देकर ‘नोटाÓ का बटन दबा देते हैं।
अफसोस की बात है कि ज्यादातर लोग सोचते ही नहीं कि देश-प्रदेश की राजनीति की दशा-दिशा क्या और कैसी होनी चाहिए। आज राजनीति पैसे कमाने का जरिया बन गई है। एक लगाकर दस कमाने का धंधा सा हो गया है। राजनीति का अपराधीकरण तक हो गया है। येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीतना, सत्ता हथियाना और अपना स्वार्थ व हित साधना ही राजनीति का मुख्य ध्येय हो गया है। तब भी लोग सोये हुए हैं। बेफिक्र हैं, जैसे कि सबकुछ अपनेआप ठीक हो जाएगा! अब भी समय है संभल जाने के लिए। राजनीति में अच्छे लोगों को लाने के लिए।
वर्तमान की महत्त्वपूर्ण बात यह है कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए हर चुनाव में ऐसे मतदाताओं और प्रत्याशियों की जरूरत है, जो ईमानदार, चरित्रवान, नीतिवान और कर्तव्यवान हों। देश का विकास और जनता का हित सोचते हों। क्योंकि, अच्छे लोगों से ही अच्छा समाज बनेगा। अच्छे नेतृत्त्वकर्ता से मजबूत देश का निर्माण होगा। निस्वार्थ और सद्चरित्र तो सभी जगह जरूरी है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो