scriptराजनीति में पैसे वालों का बोलबाला! | rajnitik vyang | Patrika News

राजनीति में पैसे वालों का बोलबाला!

locationरायपुरPublished: Dec 07, 2018 06:21:24 pm

Submitted by:

Gulal Verma

महज मतदाता बन कर रह गए हैं आमजन

cg news

राजनीति में पैसे वालों का बोलबाला!

मतदान के बाद लोग गहरे सोच-विचार में डुबे हुए हैं। क्या आमजन सिर्फ मतदाता हैं। वोट डालो और फिर आगामी चुनाव तक के लिए राम-राम। न तो सत्तापक्ष पूछता है और न ही विपक्ष। जनता भी तो चाहती है कि सचमुच में बने ‘अपनी सरकार।Ó ऐसा लगने लगा है कि चुनाव लडऩा पूंजीपतियों का ही ‘जन्म सिद्ध अधिकारÓ बन गया है।
राजनीति खाई की तरह है, जितना नीचे उतरेंगे उतनी ही आश्चर्यजनक बातें जानने, देखने, सुनने को मिलेगी। वर्तमान में राजनीति ‘अंधेरी गुफाÓ बन गई है। राजनीति का चाल, चलन और चरित्र बदल गया है। नेताओं की सोच और व्यवहार मेें लोकतंत्र, जनता व देश के हित के अनुरूप बदलाव असंभव प्रतीत होने लगा है, जैसे- ‘रात्रि में सूरज निकलना।Ó कितनी भयावह है यह कल्पना कि आज राजनीतिज्ञ ‘राजा-महाराजा, शहंशाह, सम्राट की भांति लोकतंत्र को चलाना चाहते हैं। उनके जैसे शासक बनकर शासन करना चाहते हैं।
लोकतंत्र में आमजन के महत्त्व को अच्छे ढंग से प्रतिपादित किया गया है। ‘जनता की सरकारÓ की अवधारणा इस बात को सच भी साबित करती है। लेकिन वर्तमान राजनीति का हाल यह है कि नेताओं का संबंध जनता से ‘मकड़ी के जालेÓ के समान बुन लिया गया है। आखिर में इस जाले में उलझ कर तड़पने की नियति जनता की है। वैसे तो चुनाव के वक्त राजनीतिज्ञ ‘गुड़ में मक्खीÓ की भांति आमजनों के आसपास भिनभिनाते रहते हैं। लेकिन चुनाव के बाद उनके सुख-चैन को ही नहीं लूटते, बल्कि खून भी चूस लेते हैं। जबकि आम जनता न हो तो राजनीतिज्ञों को कोई पूछेगा भी नहीं। राजनीतिज्ञों की सारी महत्ता ही आमजनों की वजह से है। राजनीति में नेताओं को आमजनोंं से संपर्क रखना ही पड़ेगा। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो इनके होने या ना होने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा। जैसे कोयले की खदान में दबे हीरे, समुद्र की गहराई में छुपे मोती की कीमत भी लोगों के हाथ में आने के बाद ही होती।
सरकार जनता के लिए होती है। हर वर्ग की बेहतरी की जिम्मेदारी सरकार की ही होती है। लेकिन अफसोसनाक है कि वर्षों से उपेक्षित है गरीब जनता। उनके पास कुछ नहीं है सिवाय ‘धरती बिछौना और आसमान ओढऩाÓ के। उनका अपना कोई नहीं है। न ही इन्हें कोई अपना मानता है। और यदि, चुनाव हो तो नेताओं और राजनीतिक दलों का बेड़ापार ये ही लोग लगाते हैं। जनता की भांति यदि सरकार और उनके नुमाइंदे अपना फर्ज ईमानदारी से निभाएं तो देश की तस्वीर और देशवासियों की तकदीर बदलते देर नहीं लगेगी। देश और समाज में व्याप्त ज्यादातर समस्याओं का समाधान तो यूं ही निकल आएगा, बस नेताओं को स्वार्थ की राजनीति छोडऩा पड़ेगा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो