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लोकतंत्र के अवगुणों को दूर करने की जरूरत!

locationरायपुरPublished: Dec 05, 2018 08:07:27 pm

Submitted by:

Gulal Verma

लोकतंत्र की अवनति के लिए आखिर जिम्मेदार कौन, नेता या जनता?

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लोकतंत्र के अवगुणों को दूर करने की जरूरत!

देश में लोकतंत्र आजादी के बाद से ही अस्तित्व में है। उस समय राजनीति में लोग देश सेवा और जनहित की भावना से आते थे। कुछ वर्षों बाद ही राजनीति से ‘नीतिÓ गायब होने लगी। राज करना, कुर्सी हथियाना ही महत्त्वपूर्ण हो गया। इन बातों को बताने का कारण यह है कि आज ज्यादातर लोग राजनीति में सिर्फ पद, पैसा और पॉवर के उद्देश्य से ही हैं। लिहाजा, जनता पस्त और नेता मस्त हैं। सारी व्यवस्थाएं तार-तार की जा रही हैं। ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंसÓ कहावत आज चहुंओर चरितार्थ होती नजर आती है। लगता है जनता महज तमाशबीन बन कर रह गई है। ऐसा भी नहीं है कि जनता को कभी मौका ही नहीं मिलता, लेकिन वह इसका सदुपयोग करने से चूक-सी जाती है।
अफसोसनाक है कि आज ‘जैसा देश- वैसे भेषÓ या फिर ‘जैसा राजा-वैसा प्रजाÓ की हालत भारतीय राजनीति की हो गई है। चुनाव के पहले राजनीतिक दल और उनके नेता झूठे वादे, आश्वासन, घोषणा के साथ ही पैसा, शराब सहित कई प्रकार की वस्तुएं लोगों को हाथ खोलकर बांटते हैं। और, ज्यादातर लोग हैं कि दोनों हाथों से स्वीकार कर लेते हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि चुनाव के बाद विजयी नेता या दल ‘गिरगिट की तरह रंगÓ बदल लेते हैं। वादाखिलाफी करते हैं। घोषणाओं, आश्वासनों को पूरा करने में रुचि नहीं लेते। ‘अपना घर भरता, चूल्हे में जाय जनताÓ की सीधी लकीर पर चलने लगते हैं।
चुनाव से पहले ‘उपहारÓ लेने वाले लोग ‘उपहासÓ के पात्र बन जाते हैं। जो नेता उनकी चौखट पर जूते रगड़े थे, हाथ जोड़ते थे, वोट देने के लिए मिन्नतें करते थे, जनता को अपना तारणहार बताते थे, वही नेता अपने तारणहारों से सीधे मुंह बात नहीं करते। ‘दूध में मक्खीÓ की भांति उन्हें निकाल कर फेंक दिया जाता है। इससे ‘मुर्गी पहले आई या अंडाÓ की भांति भारतीय लोकतंत्र में आज सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है कि ‘नेताओं ने जनता को भ्रष्ट बनाया या फिर जनता ने नेताओं को।Ó
चिंता की बात है कि आज देश में हालात इतने बदतर हो गए हंै कि घपले-घोटाले, अनियमितता, गड़बड़ी, रिश्वतखोरी तो जैसे कोई मुद्दा ही नहीं रहे। राजनीतिक शोर-गुल, सत्ता की खींचातानी, नेताओं की ऊलजुलूल बयानबाजी, पक्ष-विपक्ष के मनगढ़ंत आरोप-प्रत्यारोप, छद्म देशभक्ति, तथाकथित धार्मिकता की आंधी ने सबकुछ तहस-नहस कर दिया है। इससे कोई भी क्षेत्र, वर्ग या समुदाय अछूता नहीं है।
हद तो यह है कि सत्ता पर काबिज होने के लिए ‘अनैतिक व मौकापरस्तÓ गठजोड़ को जायज ठहराया जाता है। लोकतंत्र को मजाक बना दिया गया है। एक चुनाव किसी पार्टी की टोपी पहनकर लड़ते हैं और टिकट नहीं मिलने पर अगली बार अपने सिर पर दूसरे रंग की टोपी पहन लेते हैं। लेकिन सत्तालोलुपता की वजह से राजनीतिक दल ऐसे सहज, सुलभ, सरल, व्यावहारिक व नीतिपरक वाजिब नियम-कानून बनाना नहीं चाहते। तर्कहीनता व अलोकतांत्रिकता को सत्ता हासिल करने का मार्ग मान लिया गया है।
कुल मिलाकर अलोकतांत्रिक सोच रखने वाले लोगों द्वारा लोकतंत्र का संचालन किया जा रहा है, जैसा नजारा है! लोकतंत्र को मजबूत बनाइए, क्योंकि नेता हो या जनता, देश-समाज के हित में सत्य, ईमान, निष्पक्ष व निस्वार्थभाव की जरूरत है।

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