रायपुर

भितरघात करने की आदत!

अपनी-अपनी राजनीति, अपना-अपना स्वार्थ

रायपुरDec 07, 2018 / 06:32 pm

Gulal Verma

भितरघात करने की आदत!

देखिए! राजनीति के रंगमंच पर अब एक नया तमाशा शुरू हो गया है। छत्तीसगढ़ में जब से चुनाव खत्म हुए हैं, तब से राजनीतिक दलों में भितरघातियों को लेकर भारी आक्रोश है। ‘गद्दारों को बाहर करोÓ की मांग जोर-शोर उठ रही है। भितरघातियों की सूची तैयार है। उत्सुकता बस इस बात की है कि भितरघाती हैं कौन-कौन और उनके खिलाफ कार्रवाई कब होगी और सजा क्या-क्या मिलेगी।
एक फिल्म आई थी असली-नकली। उसका गाना है – ‘लाख छुपाओ छुप न सकेगा राज हो कितना गहरा, दिल की बात बता देता है, असली-नकली चेहरा।Ó भितरघातियों पर यह गाना सटीक बैठता है। दरअसल, भितरघात करना कई लोगों का पेशा और कुछ की आदत ही बन जाता है। फिर वे सही-गलत, अपने-पराए सब के खिलाफ अंदर ही अंदर गड्ढा खोदने लगते हैं। भितरघात की यह प्रवृत्ति यदि नेताओं, पदाधिकारियों या कार्यकर्ताओं में पनपती है तो उन्हें समय रहते सावधान हो जाना चाहिए, संभल जाना चाहिए। वरना, वे खुद के लिए निलंबन, बर्खास्तगी व अपमान का मार्ग प्रशस्त कर रहे होते हैं। इसका खमियाजा आखिरकार स्वयं ही भुगतते हैं। पार्टी व पद से हाथ धो बैठते हैं। सच तो यह है कि जैसे ही भितरघात करने की इच्छा जागृत होती है, वे सोचते तक नहीं कि क्या ऐसा करना सही है? वे जैसा करते हैं, दूसरों के बारे में भी वही सोचने लगते हैं। यहीं से ‘विश्वासघातÓ की नींव पड़ जाती है। जिनके खिलाफ भितरघात किया यदि वह जीत गया तो उसका कुछ नहीं बिगड़ता, लेकिन भितरघाती की परेशानी अवश्य शुरू हो जाती है।
दूसरी बात, भितरघाती न कभी खुश रह पाता है और न ही संतुष्ट। कोई भी चुनाव हो, वह फिर सोचने लगता है कि किसके खिलाफ जाने के फायदा होगा? किसको हराने से मन को शांति मिलेगी, पद मिलेगा, मोटी कमाई होगी। यदि पार्टी ने विश्वास जताया, कोई जिम्मेदारी दी, पद पर बैठाया तो भी भितरघात करने से बाज नहीं आते।
तीसरी बात, भितरघात करने की प्रवृत्ति उनको कहीं का नहीं रहने देती। न इस पार्टी के रहते हैं और न उस पार्टी के। ‘न घर का, न घाट काÓ कहावत चरितार्थ हो जाती है। भितरघात करने को ‘राजनीतिक आत्महत्याÓ करने के समान समझो। अजी! हार-जीत तो चुनावी राजनीति का अभिन्न अंग है। ऐसे में भितरघात की प्रवृत्ति को छोड़कर लोग बेइज्जत होने से तो बच ही सकते हैं!
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में घात, प्रतिघात और भितरघात आम सा लगता है। भितरघात करने वाले कई दफे अपने मिशन में कामयाब होते भी दिखाई पड़ते हैं। फिर चाहे उनकी वर्षों की विश्वसनीयता ही चली जाए। इनकी राजनीति में ज्वार-भाटा की तरह उतार-चढ़ाव चलता ही रहता है।

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