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साथ ही मेडिकल कॉलेज में भविष्य में चिकित्सा छात्रों के अध्ययन के लिए परिजनों की स्वीकृति पर स्टोन बेबी को सुरक्षित रख लिया गया है। महिला को राजधानी के एक अन्य अस्पताल से सोनोग्राफी की रिपोर्ट के साथ रेफर किया गया था। सोनोग्राफी से जानकारी मिली कि महिला के पेट के अंदर करीब 7 माह का स्टोन बेबी है, जो गर्भाशय के बाहर पेट में स्थित है और कैल्शियम के जमाव से पत्थर (लिथोपेडियन) में तब्दील हो चुका है। लिथोपेडियन या स्टोन बेबी तब बनता है जब गर्भावस्था, गर्भाशय के बजाय पेट में (एब्डामिनल प्रेगनेंसी) होती है।15 दिनों पहले हुई थी नॉर्मल डिलेवरी
महिला की 15 दिनों पहले नॉर्मल डिलेवरी हुई थी। करीब साढ़े 7 माह के एक जीवित शिशु को जन्म दिया था। हालांकि, इलाज के बाद उसे बचाया नही जा सका। महिला के पेट में दो बेबी थे। एक जो बच्चेदानी (यूट्रस) के अंदर सामान्य शिशुओं की तरह पल रहा था एवं जीवित जन्म लिया और दूसरा बच्चेदानी के बाहर एवं पेट (आंत व आमाशय के आसपास) के अंदर स्टोन (मृत) में तब्दील हो चुका था। डॉ. ज्योति जायसवाल ने बताया कि ऑपरेशन में ज्यादा दिक्कतें नहीं आई क्योंकि पेट के अंदर बेबी ने आसपास के अंगों को प्रभावित नहीं किया था। ऑपरेशन में डॉ. रुचि गुप्ता, डॉ. स्मृति नाईक और डॉ. प्रियांश पांडे, एनेस्थीसिया से डॉ. मुकुंदा ने भी काफी सहयोग दिया।
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मेडिकल कॉलेज में संभवत: तीसरा केस
डॉ. ज्योति जायसवाल ने बताया कि बतौर डॉक्टर रायपुर मेडिकल कॉलेज में यह तीसरा केस देखा है। इससे पहले पीजी स्टूडेंट थी तब करीब 22 साल पहले एक केस देखा था। कुछ सालों पूर्व एक और केस यहां आया था। संभवत: यह तीसरा केस है। एब्डॉमिनल प्रेगनेंसी में पेट के अंदर बहुत कम बच्चे जीवित रह पाते हैं। ऐसा भी नहीं होता कि बच्चा पेट के अंदर इतना बड़ा हो गया हो कि डिलीवरी का टाइम आ गया और मरा नहीं। यह भी दुर्लभ है।