छत्तीसगढ़ में रोका-छेका की पुरानी परंपरा रही है, जिसमें ग्रामीण आपसी समन्वय से फसलों की सुरक्षा के लिए पशुओं के रख-रखाव का प्रबंधन करते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में खेती में मशीनीकरण के फलस्वरूप किसानी में पशुधन से आर्थिक लाभ नहीं हो रहा था। इसके चलते ज्यादातर पशुपालक अपने पशुओं को सडकों पर आवारा छोड़ देते थे। इस समस्या के निदान की पहल करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने रोका-छेका अभियान को जनसहयोग से पुनर्जीवित किया था।