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राज्य सूचना आयोग (State information commission) के मुताबिक अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग आरटीआई (RTI) का उपयोग बहुत कम करते हैं। अनुसूचित जनजाति वर्ग के केवल 6 हजार 598 लोगों ने ही आरटीआई लगाया है। जबकि पिछड़े वर्ग के 24 हजार 628 और अन्य वर्ग के 51 हजार 213 लोगों ने आरटीआई का उपयोग किया है। आरटीआई की फीस से ही करीब 31 लाख रुपए मिले हैं।एक साल में 623 शिकायतें, 670 पहले से ही लंबित
राज्य सूचना आयोग के आंकड़ों से एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी सामने आया कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग आरटीआई (RTI) का उपयोग कम करते हैं, लेकिन राज्य सूचना आयोग में सबसे ज्यादा शिकायतें पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को लेकर आती है। जनवरी 2018 से दिसम्बर 2018 के बीच आयोग को 623 शिकायतें मिली थी। जबकि पिछले साल की 670 शिकायत आयोग के पास पहले से ही लंबित थी। दिसम्बर 2018 की स्थिति में आयोग के पास पंचायत विभाग की 977 शिकायतें लंबित थीं। पंचायत विभाग के बाद नगरीय प्रशासन विभाग के 128, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग की 112, गृह विभाग की 63 शिकायतें आयोग को मिली है।
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सामाजिक कार्यकर्ताओं के 7 हजार से अधिक आवेदन
आरटीआई का उपयोग करने में शासकीय सेवक सबसे पीछे हैं। प्रदेशभर में 5 हजार 968 शासकीय सेवकों ने आरटीआई का उपयोग किया है। जबकि 7 हजार 398 महिलाओं ने अपने अधिकारियों के लिए आरटीआई लगाया है। सबसे अहम बात यह है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं की तुलना में पत्रकार ज्यादा आरटीआई (right to information) लगा रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जहां 7 हजार 60 आवेदन दिया है, तो पत्रकारों ने सबसे अधिक 11 हजार 798 आरटीआई लगाई है।
12 विभागों की नहीं मिली कोई शिकायत
प्रदेश के 45 शासकीय विभाग में आरटीआई का प्रावधान किया गया है। कोई भी व्यक्ति 45 विभागों में जाकर आरटीआई के तहत जानकारी प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र है। यहां आरटीआई के तहत जानकारी नहीं मिलने पर राज्य सूचना आयोग में शिकायत की जा सकती है। इसके बाद भी 12 विभाग ऐसे हैं, जहां जनवरी 2018 से दिसम्बर 2018 तक राज्य सूचना आयोग को कोई भी शिकायत नहीं मिली है।
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इनमें पशुधन विकास एवं मछली पालन विभाग, योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग, पुर्नवास विभाग, धार्मिक न्याय एवं धर्मस्व विभाग, समाज कल्याण विभाग, संसदीय कार्य विभाग, विमानन विभाग, बीस सूत्रीय क्रियान्वयन विभाग, सूचना प्रौद्योगिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग, आयकट विभाग, सार्वजनिक उपक्रम विभाग और जन शिकायत निवारण विभाग शामिल हैं।एक्सपर्ट व्यू
सेवानिवृत्ति वरिष्ठ आईएएस बीकेएस रे ने कहा, शहरी क्षेत्र में आरटीआई (RTI) का संगठित समूह है। जबकि ग्रामीण क्षेत्र में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र में जागरुकता की भी कमी है। दूरस्थ क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों को सुनवाई के लिए बार-बार शहर आना पड़ता है। जबकि शहरी क्षेत्र के लोगों के लिए यातायात की पर्याप्त व्यवस्था रहती है। यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्र में आरटीआई (right to information) लगाने वालों की संख्या बहुत कम है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को नियम-कायदों की पर्याप्त जानकारी नहीं होती है। इसका असर भी दिखाई देता है।RTI Amendment Bill