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गरीब घर के बच्चे भी अब पढ़ सकेंगे महंगे स्कूलों में, RTE सीटों को भरने नियमों में बदलाव की तैयारी

locationरायपुरPublished: Feb 17, 2020 08:18:35 pm

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CG Desk

हर बार खाली रह जाती है निजी स्कूलों की सीट, विधि विभाग से भी सलाह लेगा स्कूल शिक्षा विभाग .

RTE सीटों को भरने नियमों में बदलाव की तैयारी

RTE सीटों को भरने नियमों में बदलाव की तैयारी

रायपुर. राज्य सरकार शिक्षा का अधिकार कानून (RTE) के तहत ज्यादा से ज्यादा गरीब बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए नियमों में बदलाव की तैयारी कर रही है। नियमों का खाका तैयार होना शुरू हो गया है। सूत्रों की मानें तो गरीबों की परिभाषा में फेरबदल हो सकता है। इसे अंतिम रूप देने के बाद स्कूल शिक्षा विभाग विधि विभाग से भी सलाह लेगा। यदि सब कुछ सही रहा तो निजी स्कूलों में हर बार खाली रह जाने वाली आरक्षित सीटों को आसानी से भरा जा सकेगा।
विभागीय अधिकारियों का मानना है कि वर्तमान में आरटीई के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की जो परिभाषा दी गई है, उसके दायरे में सीमित परिवार ही आ पाते हैं। इस वजह से आरक्षित सीटें भी खाली रह जाती है। विभाग का मानना है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की परिभाषा में थोड़ा बदलाव किया जाए, तो इसका फायदा ज्यादा परिवारों को मिल सकेगा। इसे देखते हुए विभाग ने अपनी तरफ से होमवर्क करना शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि नए शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पहले नियमों में बदलाव हो सकता है। हालांकि इसकी प्रक्रिया काफी लंबी होगी।
प्रमुख सचिव जता चुके हैं नाराजगी
बताया जाता है कि स्कूल शिक्षा विभाग में प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला पदभार ग्रहण करने के बाद विभाग की सभी योजनाओं की समीक्षा की थी। इसमें जब आरटीई की समीक्षा हुई तो यह बात सामने आई है कि नियम के बावजूद निजी स्कूलों में आरटीई के तहत आरक्षित सीटें खाली रह जाती है। इस पर प्रमुख सचिव ने नाराजगी भी जताई थी। इसके बाद अफसरों बताया कि कानून के मुताबिक आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे नहीं मिल पाते हैं। इसे देखते हुए नियमों में बदलावा पर चर्चा शुरू हुई।
इस वजह से भी होती है दिक्कत
प्रदेश में 2009 में आरटीई लागू हुआ था। इसके बाद से इसे लेकर नए-नए प्रयोग होते रहे हैं। एक समय तो विभाग ने नि:शुल्क प्रवेश के लिए शासकीय स्कूलों में प्रवेश दिलाने पर जोर लगा दिया था। इससे अभिभावकों की रुचि भी घट गई थी। इसके अलावा प्रवेश को किलोमीटर की दायरे में भी बांधा गया है। इससे भी अभिभावकों को परेशानी होती है। इन सब को देखते हुए गरीबी रेखा कार्ड के आधार पर गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा का लाभ देने की मांग भी उठने लगी है। छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल ने मांग की है कि जिस प्रकार डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना का लाभ लेने स्मार्ट कार्ड की अनिवार्यता समाप्त कर दिया गया है। उसी प्रकार आरटीई प्रवेश के लिए सर्वे सूची की अनिवार्यता को भी समाप्त करना चाहिए और सिर्फ गरीब रेखा कार्ड के आधार पर गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा का लाभ मिलना चाहिए।
अंग्रेजी से ज्यादा हिंदी मीडियम स्कूलों में प्रवेश
वित्तीय वर्ष 2019-20 में आरटीई के तहत प्रदेशभर में 48 हजार 154 विद्यार्थियों को प्रवेश दिया गया था। खास बात यह है कि अंग्रेजी माध्यम की तुलना में हिंदी माध्यम के स्कूलों में सबसे अधिक प्रवेश हुए थे। विभागीय आंकड़ों के मुताबिक हिंदी माध्यम के स्कूलों में 26 हजार 770 ओर अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में 21 हजार 384 विद्यार्थियों का प्रवेश हुआ था।
वर्जन
मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरुप शिक्षा का अधिकार कानून के तहत ज्यादा से ज्यादा गरीब बच्चों को प्रवेश देने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए सभी विकल्पों पर विचार किया जा रहा है।
डॉ. आलोक शुक्ला, प्रमुख सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग

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