लछमन मस्तुरिया के गीत म संबोधन सब्द
रायपुरPublished: Aug 08, 2022 04:40:25 pm
कई गीतकारमन सम्बोधन के सानदार परयोग करके गीतमन ल नवा ऊंचाई दिन, फेर मस्तुरियाजी के बाते अलग रिहिस। आज के गीतकारमन ला चाही कि उमन मस्तुरियाजी के गीत ल चेत लगा के सुनंय अउ अपन गीत म घलो अइसन संबोधन के परयोग करंय कि गीत मधुरता म कोनो कमी झन आए।
लछमन मस्तुरिया के गीत म संबोधन सब्द
छत्तीसगढ़ी भाखा म संबोधन सब्दमन के मधुरता देखते बनथे। हमर भाखा म संबोधन के कतकोन सब्द बोले जाथे। फेर, छत्तीसगढ़ी भाखा म संबोधन चिन्ह (!) के परयोग कमेच दिखई देथे। छत्तीसगढ़ी कविता म संबोधन के अपन अलगेच लालित्य हवय। अगर छत्तीसगढ़ी काव्य म संबोधन सब्द के लालित्य देखना हवय त लछमन मस्तुरिया के गीत के अवलोकन करे ल परही। मोर जानबा म संबोधन सब्द के लालित्य मस्तुरिहाजी के गीत म सबले जादा मिलथे।
एक संबोधन सब्द हे ‘रे’। ऐकर परयोग अपन ले छोटे बर ही करे जा सकथे, फेर मस्तुरियाजी अपन गीत म ‘रे’ के अतका खूबसूरती से परयोग करे हवय कि गीत के मधुरता अउ बाढ़ गे हे। लक्ष्मन मस्तुरिया के गीत म संबोधन सब्द के लालित्य देखव।
मोर संग चलव रे, मोर संग चलव गा, मोर संग चलव जी।
ए कालजयी गीत म ‘रे’ के प्रयोग से गीत के मधुरता अउ बाढ़ गे हवय।
ले चल ‘रे’ ले चल, ले चल ‘गो’ ले चल ‘ओ’ मोटरवाला ले चल।
बखरी के तुमा नार बरोबर
मन झूम रे।
वा रे मोर पडकी मैना। अपन परेमिका ल पडक़ी मैना के रूप देख के ‘रे’ के परयोग। पता दे जा ‘रे’ पता ले जा ‘रे’ गाड़ीवाला। ‘ओ’ गाड़ीवाला ‘रे’ पता दे जा रे पता ले जा रे।
अहो मन भजो गनपति गणराज।
मस्तुरियाजी अपन मन ल संबोधित करत हे। (मन ल ‘अहो’ कहि के संबोधन)
हम तोरे संगवारी ‘कबीरा हो’
मन डोले ‘रे’ माघ फगुनवा।
नरवा म अगोर लेबे ‘रे’,
नरवा म अगोर लेबे ‘गा’।
मंय छत्तीसगढिय़ा अंव ‘रे’,
मंय छत्तीसगढिय़ा अंव ‘गा’।
मंय बंदथौं दिन रात ‘वो’
मोर धरती मैया।
मोला जावन दे ना ‘रे’अलबेला।
काबर समाए रे मोर ‘बैरी’ नैना मा।
‘अहो’ गजानन स्वामी हो,
डंडा-सरन पांव।
मंगनी मा मांगे मया नइ मिले ‘रे’
मंगनी मा।
संगी के मया जुलुम होगे‘रे’।
चल-चल ना किसान बोये चली धान असाढ़ आगे ‘गा’।
चल ‘जोह’ जुरमिल
कमाबो ‘जी’करम खुलगे।
दया मया ले जा ‘रे’ मोर गांव ले।
मोर खेतिखार रुनझुन, मन भौंरा नाचे झूमझूम, किंदर के आबे चिरैया रे। किंदर के आबे मोर ‘भौंरा रे’।
काल के अवइया कइसे आज ले नइ आये, तोला का होगे,
रस्ता नइ दिखे ‘बइरी’तोर।
चौंरा मा गोंदा ‘रसिया’
मोर बारी मा पताल ‘रे’चौंरा मा गोंदा।
मोला जावन दे ना ‘रे’ अलबेला मोर।
जागौ रे जागौ बागी बलिदानीमन, महाकाल भैरव लेखनी म
हामाया सीतला कालीमन।
ए गीत के पूरा सब्द मन संबोधन के हवय।
वा रे मोर ‘पडक़ी मैन’।
छोड़ के गंवई सहर डहर झन जा झन जा ‘संगा रे’।
मोर गंवई गंगा ए।
रेंगव-रेंगव ‘रे’रेंगइया, बेरा कडक़थे रे।
‘भइया गा’ किसान हो जा तियार।
तोर मुरली म कइसे
जादू भरे ‘जोड़ीदार’।
मोर कुरिया सुन्ना ‘रे’, बियारा सुन्ना ‘रे मितवा’ तोरे बिना हितवा,तोरे बिना।
आ मोर बइया मा ‘गांजा कली’
गाड़ी चढ़ के बंबई कोती भाग चली।
दुख के रतिहा काट संगी,
सुख बिहिनिया आही र, ‘संगवारी रे’।
मोर मया तोर बर जहर जुलुम होगे ‘लहरी यार’।
झमझम ले लुगरा पहिर के आये हौं, देखव तो ‘जोड़ी’ मैं कइसे लागे हौं।
दुनिया मड़ई मेला बजार ए,
ए बजार ए ‘गा भइया’
तहीं बता ‘रे’ मोर मयारू,
तोर-मोर भेंट कहां मेर होही।
आ गे सुराज के दिन ‘रे संगी’।
ए गीतमन म र, अरे, अहो, ओ, गा, गो, जी, जोही, संगवारी रे, रे संगी, पडक़ी मैना, रसिया, मितवा, हितवा, जोड़ी, जोड़ीदार, गांजा कली, चिरैया रे, भौंरा रे, रे मोर मयारू, रे अलबेला, बैरी, लहरी यार, रे रेंगइया, भइया गा, भइया हो, गा भइया, कबीरा हो, रे रेंगइया, संगा रे,
संबोधन सब्द के परयोग कवि लछमन मस्तुरियाजी ह अपन गीत म करे हवंय। कई गीतकारमन सम्बोधन के सानदार परयोग करके छत्तीसगढ़ी गीतमन ल नवा ऊंचाई दिन, फेर मस्तुरियाजी के बाते अलग रिहिस।
आज के गीतकारमन ला चाही कि उमन मस्तुरियाजी के गीत ल चेत लगा के सुनंय अउ अपन गीत म घलो अइसन संबोधन के परयोग करंय कि गीत मधुरता म कोनो कमी झन आए। – अजय ‘अमृतांशु’
भाटापारा