ऐसे हुई शुरुआत
मूर्तिकला का काम तो मैं जानता ही था। एक बार अखबार में पूरी के तट में बनी रेत की कलाकृति की फोटो देखा। तब से दिमाग में चल रहा था कि मैं भी ऐसा कुछ बना सकता हूँ। दिन बीतते गए लेकिन इसे करने का जुनून स्थित था। 5 सितंबर टीचर डे पर गांव के स्कूल में सर्वपल्ली राधाकृष्णन की कलाकृति बनाई। हालांकि इसमें काफी परफेक्शन की जरूरत थी लेकिन गांव के लोगों ने मेरा हौसला बढ़ाया। बस यहीं से सिलसिला निकल पड़ा।त्रिवेणी संगम में जुटने लगी भीड़
गांव में ही कलाकृति बनाने लगा। दोस्तों ने सलाह दी कि मेहनत को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए त्रिवेणी संगम में बनाना चाहिए। मैंने वहां शुरुआत की और उसे देखने भीड़ इक_ी होने लगी। तभी मेरा कॉन्फिडेंस बढऩे लगा। मुझे राजिम माघी पुन्नी मेले में नरवा- घुरुआ थीम पर आर्ट बनाने का काम मिला जिसे काफी पसंद किया गया।जिसमें रुचि हो वही करना चाहिए
मैंने कहीं सुना था कि जिस काम में रुचि हो वही करना चाहिए। आप जितनी भी मेहनत कर लो पता नहीं चलता। सैंड आर्ट में कई घण्टे लग जाते हैं लेकिन मुझे टाइम का पता नहीं चलता। इस काम में मुझे आनंद आता है। अच्छी बात ये हो गई कि ये मेरे लिए रोजगार का विकल्प भी बन चुका है। मुझे शादियों में काम मिलने लगा है। बीते दिनों मैंने इस आर्ट पर रायपुर और हैदराबाद में काम किया है।