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बफे ह अनुसासन ल लीलत हे

locationरायपुरPublished: Jun 27, 2018 06:29:15 pm

Submitted by:

Gulal Verma

संयुक्त परिवार या सामूहिकता के बिखरई ह बड़ दुखदाई होवत जावत हे।

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बफे ह अनुसासन ल लीलत हे

पंगत म घर-परिवार, संगी-संगवारी अउ सगा-पहुना जम्मो मिल के संग म खावन, हांसन-गोठियावन, एक-दूसर के सुख-दुख ल बांटन त अब्बड़ निक लगय। फेर, अब देखावा के नांव म बफर पारटी के खड़े-खड़े खवई, ऐती-तेती, किंजरई हमर सामूहिकता के सुख अउ अनुसासन दूनों ल लीलत हे। आज हमर संयुक्त परिवार के जीवनसैली ल छोड़ के एकाकी जीवन के रद्दा ल धरत जावत ह, तेन ह अइसने बफर बनाम अकेल्ला खवई के सेती आय।
संयुक्त परिवार या सामूहिकता के बिखरई ह बड़ दुखदाई होवत जावत हे। ए सब ल देख के घलो हम बाहरी रीति-रिवाज के अनुसरन ल छोड़े नइ छोड़त हन। पंगत के परंपरा हमन ल सामूहिकता के संगे-संग अनुसासन के सीख घलो देथे।
कतकोन समाज म पंगत म बइठे लोगन जेवन के परोसे के बाद घलो खाए के चालू नइ करय। जब वो आयोजक घर के मुखिया या वोकर कोनो परतिनिधि लोटा म पानी धर के अपन ईस्टदेव के नांव म जोहार करही, तभे फेर एक संग खाए के अउ खाए के बाद हाथ धोए के रिवाज निभाथें। ऐहा हमर अनुसासित जीवन सैली के बहुत अच्छा उदाहरन आय।
ह मर देस म सबो राज म मांदी के परथा परचलित हे। सही म देखे जाय त ये परथा ह हमर पारिवारिक अउ सामाजिक एकता, भाईचारा, परेम-वेवहार ल बचाथे-बढ़ाथे। मांदी ह हमर संस्करीति के अंग ए। मांदी ह लोगनमन म सामाजिक अउ आरथिक समानता के भाव जगाथे। अपनापन के भाव जगाथे। मांदी के सबले बड़े महत्ताम ये बात म हावय के सबो सामूहिक रूप ले एकसंग, एक परकार के भोजन करथें।
मांदी परंपरा ह एक किसम ल मनुस्यता के पहिचान आय। भोजन खातिर लड़ई-झगरा करई, छीनई-झपटई करई, अपन-अपन हिसाब ले अंते-तंते खवई ल सामाजिकता तो नइ कहे जा सकय! अइसन म मांदी के परंपरा ल बचाय के खच्चित जरूरत हे। आधुनिकता, भौतिकवाद अउ दिखावा के समे म आज चारों मुड़ा बदलाव होवत हे। ऐकर से हमर परंपरा अउ संस्करीति ह घलो नइ बाचत हे। बड़हरमन के देखा-देखी म गरीबहामन पेरावत हें। एक भेड़ी ह तरिया म कूदतेे त वोकर पाछू सबो भेड़ीमन तरिया म कूद देथें, तइसे कस हाल मनखे के नइ होय बर चाही।
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