एक समय अंबिकापुर का एक बड़ा हिस्सा माओवादी हिंसा से प्रभावित था। अब ऐसी स्थिति नहीं है, बावजूद इसके पूरे जिले में यह धारा प्रभावशील है। यह धारा क्यों और किसलिए प्रभावशील है, इसे लेकर कलक्टर किरण कौशल का कहना है कि जिले की पुलिस समय-असमय शांति भंग होने की आशंका प्रकट करते रहती है लिहाजा उनके प्रतिवेदन को आधार मानकर धारा लागू है। गौरतलब है कि अंबिकापुर जिले के उदयपुर, परसाकेते, लखनपुर और मैनपाट के एक बडे हिस्से में बेशकीमती कोल खदानें मौजूद है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला का कहना है कि ज्यादातर खदानों पर एक निजी कंपनी ने कब्जा जमा लिया है जिसके चलते न केवल पर्यावरण नियमों की धज्जियां उड़ रही है बल्कि आदिवासी ग्रामीणों के सामने रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है। यदि कभी ग्रामीण अपनी मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन या आंदोलन करते हैं तो प्रशासन के नुमाइंदों के बजाय कंपनी के कर्ताधर्ता वीडियो रिकार्डिंग करने लगते हैं। अभी पिछले दिनों उदयपुर इलाके के एक आंदोलन में आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने भी शिरकत की थी। नेताम ने बताया कि पहले तो प्रशासन ने इस आंदोलन को रोकने के लिए कई तरह के हथकंड़ों को आजमाया, जब कामयाबी नहीं मिली तब रैली निकालने से मना कर दिया। रैली में ज्ञापन लेने आए अफसरों से पता चला कि पूरे जिले में पिछले दो साल से धारा 144 प्रभावशील है।
नेताम ने कहा कि पूरे जिले में कहीं भी शांति भंग होने जैसी स्थिति नहीं है, लेकिन प्रशासन ने अंबिकापुर को बेहद संवेदनशील क्षेत्र में तब्दील कर दिया है। उन्होंने प्रशासन पर कोल खनन करने वाली निजी कंपनी के इशारों पर काम करने का आरोप भी लगाया। नेताम ने बताया कि पूरे मामले से उन्होंने सीएम को अवगत कराया है।
गत 9 महीनों का रिकॉर्ड
जब रितु सेन अंबिकापुर की कलक्टर थीं तब से जिले में धारा 144 प्रभावशील है। उनके तबादले के बाद जब भीमसेन कलक्टर बने तब भी यह धारा नहीं हटी। इधर, भारतीय प्रशासनिक सेवा की अफसर किरण कौशल के कलक्टर बनने के बाद भी यह धारा लागू है। गत 9 महीनों का रिकार्ड बताता है कि इस धारा की अवधि हर दो महीने के बाद बढ़ती रही है।
जब रितु सेन अंबिकापुर की कलक्टर थीं तब से जिले में धारा 144 प्रभावशील है। उनके तबादले के बाद जब भीमसेन कलक्टर बने तब भी यह धारा नहीं हटी। इधर, भारतीय प्रशासनिक सेवा की अफसर किरण कौशल के कलक्टर बनने के बाद भी यह धारा लागू है। गत 9 महीनों का रिकार्ड बताता है कि इस धारा की अवधि हर दो महीने के बाद बढ़ती रही है।
यह है रिकॉर्ड
16 दिसम्बर 2016 से 16 फरवरी 2017
17 फरवरी 2017 से 16 अप्रैल 2017
17 अप्रैल 2017 से 16 जून 2017
16 जून 2017 से 15 अगस्त 2017
15 अगस्त 2017 से 14 अक्टूबर 2017 वर्ष 1970-71 में मधु लिमये ने इस धारा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। पूरे जिले में यह धारा तब लगाई जा सकती है जब कफ्र्यू जैसी स्थिति कायम हो। लोकतंत्र में सभी को धरना- प्रदर्शन और आंदोलन का अधिकार है। इस धारा का नियमित तौर पर जारी रहना पूरी तरह से गलत है। यह लोकतंत्र की हत्या करने के समान है। कोई चाहे तो इसे न्यायालय में चुनौती दे सकता है।
कनक तिवारी वरिष्ठ अधिवक्ता उच्च न्यायालय बिलासपुर
16 दिसम्बर 2016 से 16 फरवरी 2017
17 फरवरी 2017 से 16 अप्रैल 2017
17 अप्रैल 2017 से 16 जून 2017
16 जून 2017 से 15 अगस्त 2017
15 अगस्त 2017 से 14 अक्टूबर 2017 वर्ष 1970-71 में मधु लिमये ने इस धारा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। पूरे जिले में यह धारा तब लगाई जा सकती है जब कफ्र्यू जैसी स्थिति कायम हो। लोकतंत्र में सभी को धरना- प्रदर्शन और आंदोलन का अधिकार है। इस धारा का नियमित तौर पर जारी रहना पूरी तरह से गलत है। यह लोकतंत्र की हत्या करने के समान है। कोई चाहे तो इसे न्यायालय में चुनौती दे सकता है।
कनक तिवारी वरिष्ठ अधिवक्ता उच्च न्यायालय बिलासपुर