स्वच्छ शहरों की सूची में एक बार फिर प्रदेश की न्यायधानी
बिलासपुर व राजधानी
रायपुर को कोई अवार्ड नहीं मिला। हालांकि कांकेर जिले के नरहरपुर को जोनल केटेगिरी में बेस्ट सिटी इन सिटीजन्स फीडबैक का अवॉर्ड मिला है। इनोवेशन में अंबिकापुर को सर्वश्रेष्ठ शहर चुना गया है। वहीं बेस्ट परफार्मिंग स्टेट केटेगिरी में छत्तीसगढ़ को तीसरा स्थान भी मिला है। लेकिन राज्य के सर्वाधिक महत्वपूर्ण शहरों का शामिल नहीं हो पाना अत्यंत सोचनीय है। आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? इससे स्वच्छता अभियान का काम देख रहे अधिकारियों-कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना लाजिमी ही है।
नगर निगम के अफसरों ने प्रचार-प्रसार, होर्डिंग, बैनर, गीत-संगीत, नुक्कड़ नाटक, जागरुकता अभियान चलाने सहित अन्य कार्यों में ही करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। इसके अलावा सूडा ने भी स्वच्छता अभियान में अपने स्तर पर प्रचार-प्रसार सामग्री, स्वच्छता एप आदि अलग से बनवाकर जागरुकता लाने का
कार्य किया था। सूखा और गीला-कचरा अलग-अलग रखने के लिए लोगों को डस्टबिन भी बांटे थे। लेकिन उसका कोई खास फायदा नहीं हुआ। यह जरूर है कि खास मौकों पर छोटी और बड़ी कॉलोनियों में डोर टू डोर मिनी डोर, जेसीबी, ट्रैक्टर-ट्राली घूमते दिख जाते हैं। लेकिन यह हर रोज क्यों नहीं होता। केवल सर्वे में श्रेष्ठता का तमगा हासिल करने के लिए स्वच्छता अभियान चलाना कहां तक उचित है।
स्वच्छता अभियान के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने पैसे की कमी नहीं होने दी। इसके बावजूद अपनी न्यायधानी और राजधानी को एक भी अवार्ड नहीं मिलना नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों की नाकामी ही मानी जाएगी। आज सर्वत्र इसी बात को लेकर चर्चा है कि आखिर क्यों हमारी न्यायधानी और राजधानी स्वच्छता के मामले में अवार्ड केटेगरी और रैंकिंग मेंं पीछे रह जाती है। लगातार दूसरे साल इंदौर और भोपाल सबसे स्वच्छ शहर चुने गए हैं। इंदौर को पहला तो भोपाल को दूसरा स्थान मिला है, जबकि चंडीगढ़ तीसरे स्थान पर है। हम उनकी तरह क्यों नहीं बन सकते।