शशराबबंदी की कवायद
पिछले छह महीनों में तमिलनाडु, केरल और गुजरात की शराबबंदी नीति का अध्ययन
छत्तीसगढ़ में शराबबंदी के लिए कवायद की जा रही है। आबकारी और वाणिज्यकर विभाग के सचिव के नेतृत्व में सांसद, विधायक व प्रशासनिक अधिकारियों की टीम का बिहार जाकर वहां शराबबंदी नीति व इसके प्रभावों का अध्ययन करना स्वागतयोग्य है। बशर्ते, यह केवल चुनाव पूर्व दिखावे की कवायद न हो। सरकार इससे पहले शराबबंदी करने का ढोंग करती रही है। एक ओर शराबबंदी के लिए महिलाओं को आगे कर गांव-गांव में भारत माता वाहिनी का गठन करती है, दूसरी ओर शराब की अवैध बिक्री बंद कराने और शराब दुकानें हटवाने के लिए सड़क पर उतर कर आवाज उठाने वाली महिलाओं की मांगें नहीं मानती।
संस्कृति और आदिवासियों के नाम पर शराबखोरी की बाध्यता बताई जाती है, जो कि सरासर गलत है। शराब जीवन और समाज के लिए कतई जरूरी नहीं है। जो लोग शराब पीते हैं, वे इसी तरह के बहानों के आड़ लेते हैं। समय-समय पर कई धर्मगुरु प्रदेश में शराबबंदी का आह्वान कर चुके हैं। जनता तो शराब दुकानें बंद कराने सड़कों पर उतरती रहती हैं। अफसोसनाक है कि सरकार द्वारा शराब को आय का जरिया बनाए रखने का खमिजाया प्रदेश की जनता भुगत रही है। युवाओं के साथ समूचे समाज को शराब खोखला कर रही है।
शराबबंदी के लिए समाज को जागरूक बनाया जा सकता है। सामाजिक जागरुकता के बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जा सकता है। छोटे-छोटे गांवों, कस्बों में महिलाएं के समूह शराबखोरी के विरुद्ध स्थानीय स्तर पर सफल अभियान चलाते रहे हैं। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि ऐसे महिला समूहों को अगर बढ़ावा दिया जाय तो यह अच्छा काम करके दिखा सकते हैं। महिलाओं के संघर्ष का जो मॉडल है, उसका अध्ययन सरकार को भी करना चाहिए। आबकारी व वाणिज्यकर विभाग के सचिव का कहना है कि बिहार गई टीम पिछले छह महीनों में तमिलनाडु, केरल और गुजरात की शराबबंदी नीति का अध्ययन कर चुकी है। ऐसे में शराबबंदी के लिए ठोस पहल होनी चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि बिहार में बहुत हद तक शराबबंदी कामयाब हो सकती है तो छत्तीसगढ़ में क्यों नहीं?