इसका कारण है कि बैठक में कमेटी बनाने की कोई समय-सीमा तय ही नहीं की गई। इन स्थितियों में पत्रिका संवाददाता ने शुक्रवार को तकनीकी विशेषज्ञों से पूरे मसले पर राय लिया, तो यह सामने आया कि बचे हुए निर्माण में कटौती से करीब 8 करोड़ रुपए की बचत होगी। लेकिन, पिछले डेढ़ साल से रुके निमार्ण कार्य के कारण स्काईवाक की लागत 10 फीसदी हिसाब से बढ़ेगा। यानी करीब दो करोड़ की चपत लगना भी तय है। इसकी जिम्मेदारी ठेकेदार पर नहीं होगी, क्योंकि देरी सरकार के कारण हुई है।
शहर के जयस्तंभ चौक के करीब मल्टीलेवल पार्किंग से अंबेडकर अस्पताल तक स्काईवॉक का निर्माण पिछली सरकार करा रही थी। इसके लिए पहली प्रशासकीय स्वीकृति 6 मार्च 2017 को 49 करोड़ 9 लाख रुपए तय की गई थी। जब स्काईवॉक का ढांचा शास्त्री चौक तक और उधर अबंडेकर अस्पताल तक बन गया, तो तत्कालीन राज्य शासन ने पुनरीक्षित लागत तय करते हुए 13 दिसंबर 2018 को निर्माण की लागत बढ़ाकर 77 करोड़ 10 लाख रुपए स्वीकृत किया। इतनी ही लागत में स्काईवॉक का निर्माण पूरा किया जाना था, जिसमें से ठेकेदार का 8 करोड़ बकाया मिलाकर करीब 50 करोड़ रुपए खर्च हो चुका है। इसलिए अब 77 करोड़ 10 लाख की कुल लागत में से केवल 27 करोड़ 10 लाख रुपए खर्च होने के बाद स्काईवॉक का निर्माण पूरा होता, जिसमें 8 एस्केलेटर और छह जगहों पर चढऩे-उतरने के लिए लिफ्ट लगाने का प्लान शामिल था। लेकिन, पिछले डेढ़ साल से स्काईवॉक के निर्माण पर रोक लगी हुई है।
कम खर्च में तैयार होगा: पूर्व ईएनसी पीडब्ल्यूडी में प्रमुख अभियंता एवं क्वालिटी कंट्रोलर से रिटायर्ड पीएस क्षत्रिय का मानना है कि आम जनता के लिए जितना जरूरी हो। करीब ८ करोड़ एस्केलेटर और शास्त्री चौक में गोल घेरा निर्माण नहीं होने से बचत हो सकती है। केवल लिफ्ट लगाई जाए, जिसका उपयोग लोग आसानी से कर सकें। क्योंकि एस्केलेटर रेलवे स्टेशन जैसी जगहों में ही सफल नहीं है। एेसे कार्यों में कटौती करके अभी 8 से 10 करोड़ रुपए की बचत का अनुमान है। दूसरी बात, जो इतनी देर हुई है, तो उसका कास्ट भी करीब 2 करोड़ रुपए तक बढ़ेगा। एेसे में सामंजस्य बैठाकर निर्माण कराना सार्थक होगा।
स्काईवॉक पर चढऩे-उतरने का था एेसा प्लान प्लान यह था कि 24 फीट ऊंचाई वाले स्काईवॉक पर लोग पैदल चलेंगे, उन्हें सड़क और चौराहा पार नहीं करना पड़ेगा। जयस्तंभ के करीब मल्टी लेवल पार्किंग से शास्त्री चौक तक स्काईवॉक की लंबाई 614 मीटर और शास्त्री चौक से अंबेडकर अस्पताल तक 590 मीटर है। शास्त्री चौक के चारों तरफ रोटरी वाला घेरा 266 मीटर का बनता। यहीं से डीकेएस हॉस्पिटल और आंबेडकर अस्पताल दोनों एस्केलेटर व लिफ्ट के माध्यम से आपस में जुड़ते। यानी स्काईवॉक में कुल 8 एस्केलेटर और 3 लिफ्ट लगाई जाती। लाइट और सीसीटीवी कैमरे से स्काईवॉक लैस रहता । यहां तक कि शास्त्री चौक में ही 4 एस्केलेटर लगाने का प्लान था। ये सभी काम अधर में अटका हुआ है।
वरिष्ठ विधायक एवं सुझाव समिति के अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा ने बताया कि तकनीकी परीक्षण उपसमिति बनाने के लिए कलेक्टर को कहा गया है। यह कमेटी नए सिरे से मूल्यांकन कर कितनी लागत कम होगी और कितना खर्च होगा, इसका प्रस्ताव तैयार करेगी। सप्ताहभर के अंदर कमेटी गठित हो जाएगी।
कार्यपालन अभियंता ब्रिज एसवी पड़ेगांवकर ने बताया कि पिछली दो कमेटियों का गठन शासन स्तर पर किया गया था, यह आदेश सामान्य प्रशासन विभाग से जारी हुआ था। इसे देखते हुए स्काईवॉक की तकनीकी सब-कमेटी का गठन भी शासन स्तर के अनुशंसा पर ही हो सकती है।