रायपुर . रविवार को अभिनट फिल्म एवं नाट्य फाउण्डेशन गांधी चौक स्थित रंगमंदिर में'मी तात्याराव बोलतो' का मंचन किया गया। इसमें खुद सावरकर अपनी कहानी सुनाते नजर आए। योग मिश्र द्वारा लिखित, निर्देशित व अभिनीत सवा घंटे के नाटक की यात्रा सावरकर के किशोरावस्था के संघर्ष से आरंभ हुई और 20वीं सदी के उनके शुरुआती वर्षों के संघर्ष को दिखाया गया। किशोरावस्था में ही वे माता-पिता को खो देते हैं और लंदन में वजीफा हासिल करने बाद ससुराल वालों की मदद से बैरिस्टर बनने लंदन पहुंच जाते हैं। बैरिस्टरी की पढ़ाई करते हुए लंदन में क्रांतिकारी संगठन की स्थापना करते हैं। वहां के आंदोलन के प्रमुख नेता बन जाते हैं। अंडमान के सेल्युलर जेल में 11 साल यातनाओं के बीच सजा भुगतनी पड़ी, फिर सशर्त मुक्ति मिली। 1992 के बाद लगभग 35 साल बाद मंच पर अभिनय कर रहे योग मिश्र ने नाटक के चरित्र की विभिन्न उम्र के पड़ाव के अनुरूप सावरकर की भाव-भंगिमाओं में कालापानी की यातनाओं के क्षणों में उनके दुख, दर्द पीड़ा और देशभक्ति के जज्बे को मंच पर साकार किया। म्युजिक ब.व. कारंत के शिष्य रहे संगीतकार उमेश तरकसवार ने तैयार किया है। नाटक का संगीत नाटक की कथा को गति देता है और कथ्य के अनुरूप वातावरण और परिवेश का निर्माण करने में सहायता करता है। नाटक की लाइटिंग ने दृश्य के प्रभाव को कहीं से भी कम नहीं होने दिया।
रायपुर . रविवार को अभिनट फिल्म एवं नाट्य फाउण्डेशन गांधी चौक स्थित रंगमंदिर में'मी तात्याराव बोलतो' का मंचन किया गया। इसमें खुद सावरकर अपनी कहानी सुनाते नजर आए। योग मिश्र द्वारा लिखित, निर्देशित व अभिनीत सवा घंटे के नाटक की यात्रा सावरकर के किशोरावस्था के संघर्ष से आरंभ हुई और 20वीं सदी के उनके शुरुआती वर्षों के संघर्ष को दिखाया गया। किशोरावस्था में ही वे माता-पिता को खो देते हैं और लंदन में वजीफा हासिल करने बाद ससुराल वालों की मदद से बैरिस्टर बनने लंदन पहुंच जाते हैं। बैरिस्टरी की पढ़ाई करते हुए लंदन में क्रांतिकारी संगठन की स्थापना करते हैं। वहां के आंदोलन के प्रमुख नेता बन जाते हैं। अंडमान के सेल्युलर जेल में 11 साल यातनाओं के बीच सजा भुगतनी पड़ी, फिर सशर्त मुक्ति मिली। 1992 के बाद लगभग 35 साल बाद मंच पर अभिनय कर रहे योग मिश्र ने नाटक के चरित्र की विभिन्न उम्र के पड़ाव के अनुरूप सावरकर की भाव-भंगिमाओं में कालापानी की यातनाओं के क्षणों में उनके दुख, दर्द पीड़ा और देशभक्ति के जज्बे को मंच पर साकार किया। म्युजिक ब.व. कारंत के शिष्य रहे संगीतकार उमेश तरकसवार ने तैयार किया है। नाटक का संगीत नाटक की कथा को गति देता है और कथ्य के अनुरूप वातावरण और परिवेश का निर्माण करने में सहायता करता है। नाटक की लाइटिंग ने दृश्य के प्रभाव को कहीं से भी कम नहीं होने दिया।