महाराष्ट्र के बैंकों से मिली प्रेरणा
सत्यबाला ने बताया, एक कार्यक्रम में इंदौर जाना हुआ। वहां महाराष्ट्र की महिलाएं आईं थीं जो बैंक संचालित कर रही थी। उनसे बात करके मैं काफी प्रभावित हुई। उन्होंने मुझसे कहा कि आप भी बैंक खोल सकती हैं। मैंने इस बात को हंसकर टाल दिया लेकिन जब लौटी तो वही बात माइंड में आने लगी। कहते हैं कि आप जिस दिशा में सोचने लगें, उसी ओर बढऩे लगते हैं। दूसरी ओर उस वक्त मैं ये भी सोचती कि बैंक के सारे काम पुरुष ही क्यों करते हैं? जब तक महिलाएं बैंक आएंगी नहीं तो यहां का कामकाज कैसे जानेंगी। इस तरह मैं बैंक खोलने के लिए प्रेरित हुई। आज बैंक जो भी स्थिति में है इसमें मेरा कोई रोल नहीं बल्कि इससे जुड़ी हर वह महिला चाहे खातेदार, स्टॉफ या डायरेक्ट-मेंबर।आत्मनिर्भता को लेकर करती थीं काम
सत्यबाला ने बताया कि बैंक काफी बाद में आया, मैं इससे पहले महिलाओं की आत्मनिर्भरता के लिए काम करती थी। चूंकि मेरा सोचना ये था कि महिलाओं में बचत की भावना होती है, लेकिन एक ऐसा बैंक हो जिसमें वे घर जैसा माहौल महसूस करें। इसके लिए मैंने डोर-डोर शुरुआत की थी।पुरुषों का भी मिला सहयोग
फील्ड में जब हम जाते थे तो पुरुषों का भी सहयोग मिला। वे कहते थे कि आप को जिस तरह की मदद चाहिए हम करेंगे। हालांकि कई ऐसे लोग रहे जो डिमोटिवेट करते थे। अब चूंकि मैंने तो संकल्प ले लिया था, इसलिए मुझे सफलता के लिए किसी की नकारात्मक बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था।22 हजार महिलाओं को दिया लोन
सत्यबाला ने बताया, अब तक हमने करीब 22 हजार महिलाओं को लगभग 200 करोड़ लोन दिया है। इसके अलावा माइक्रो फाइनेंस के अंतर्गत 12 हजार महिलाओं को 32 करोड़ रुपए का ऋण उपलब्ध करया है। हमारा फोकस इंटरप्रिन्योर के साथ ही एजुकेशन पर भी रहता है। मैं ये मानती हूं कि अगर महिला पढ़ेगी तो पूरा परिवार पढ़ेगा।