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उक्त बोर ग्राम पंचायत की है। खुले बोर को ढंकने की जिम्मेदारी पंचायत की है। फिर भी देखता हूं। मजदूर भेजकर व अवलोकन कर उचित प्रबंध किया जाएगा।
- ए. के. खान, अनुविभागीय अधिकारी, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग राजिम
उक्त बोर ग्राम पंचायत की है। खुले बोर को ढंकने की जिम्मेदारी पंचायत की है। फिर भी देखता हूं। मजदूर भेजकर व अवलोकन कर उचित प्रबंध किया जाएगा।
- ए. के. खान, अनुविभागीय अधिकारी, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग राजिम
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मुझे नहीं पता था। पता होता हो अब तक बंद कर दिया गया होता। आगे सावधानी बरती जाएगी।
- रामजी साहू, सरपंच, ग्राम पंचायत बोडक़ी --------------------------
बाजार में खुलेआम बिक रही सागौन, धिरहा व सेनहा की नांगरडाड़ी
कोरदा (लवन)। एक जमाने से मशहूर लवन का साप्ताहिक आम बाजार प्रात: 4 बजे से देर शाम 7 बजे तक लगती है। बाजार में साग-सब्जी, टिकली-फुंदरी से लेकर सोना-चांदी तक की लेन-देन होती है। इन दिनों साप्ताहिक बाजार में जंगल से कटाई कर हल के लिए नांगरडाड़ी की बिक्री खूब हो रही है। किसानों को इन दिनों खेतों में धान बोवाई के लिए हल की आवश्यकता होती है। जिसके लिए नांगरडाड़ी औने-पौने दाम में खरीदने मजबूर हैं। किसानों के लिए वन विभाग के किसी काष्ठागार डिपो में नांगरडाड़ी बेचने की व्यवस्था नहीं है। जिसके चलते जंगल में रहने वाले कुछ लोग वन विभाग के कर्मचारियों से मिलीभगत कर कुछ राशि देकर कटाई कर लवन में बेचने आते हैं।
ग्राम अहिल्दा के एक किसान ने धीरहा की नांगरडाड़ी लवन बाजार से खरीदकर ले जा रहे थे। रास्ते में पूछने पर बताया कि पिछले वर्ष 500 रुपए में खरीदे थे। इस वर्ष 600 रुपए में खरीदना पड़ा। बताया गया कि लवन के साप्ताहिक बाजार में प्रति सप्ताह हजारों की संख्या में नांगरडाड़ी की बिक्री खूब हो रही है। व्यापारी से पूछने पर बताया कि वन विभाग के कर्मचारियों को पैसा देते हंै, तभी यहां लाकर बेच पाते हैं। नांगरडाड़ी बिना किसान खेतों में बोवाई कैसे करेंगे, जिसके चलते हम बेचते हैं।
मुझे नहीं पता था। पता होता हो अब तक बंद कर दिया गया होता। आगे सावधानी बरती जाएगी।
- रामजी साहू, सरपंच, ग्राम पंचायत बोडक़ी --------------------------
बाजार में खुलेआम बिक रही सागौन, धिरहा व सेनहा की नांगरडाड़ी
कोरदा (लवन)। एक जमाने से मशहूर लवन का साप्ताहिक आम बाजार प्रात: 4 बजे से देर शाम 7 बजे तक लगती है। बाजार में साग-सब्जी, टिकली-फुंदरी से लेकर सोना-चांदी तक की लेन-देन होती है। इन दिनों साप्ताहिक बाजार में जंगल से कटाई कर हल के लिए नांगरडाड़ी की बिक्री खूब हो रही है। किसानों को इन दिनों खेतों में धान बोवाई के लिए हल की आवश्यकता होती है। जिसके लिए नांगरडाड़ी औने-पौने दाम में खरीदने मजबूर हैं। किसानों के लिए वन विभाग के किसी काष्ठागार डिपो में नांगरडाड़ी बेचने की व्यवस्था नहीं है। जिसके चलते जंगल में रहने वाले कुछ लोग वन विभाग के कर्मचारियों से मिलीभगत कर कुछ राशि देकर कटाई कर लवन में बेचने आते हैं।
ग्राम अहिल्दा के एक किसान ने धीरहा की नांगरडाड़ी लवन बाजार से खरीदकर ले जा रहे थे। रास्ते में पूछने पर बताया कि पिछले वर्ष 500 रुपए में खरीदे थे। इस वर्ष 600 रुपए में खरीदना पड़ा। बताया गया कि लवन के साप्ताहिक बाजार में प्रति सप्ताह हजारों की संख्या में नांगरडाड़ी की बिक्री खूब हो रही है। व्यापारी से पूछने पर बताया कि वन विभाग के कर्मचारियों को पैसा देते हंै, तभी यहां लाकर बेच पाते हैं। नांगरडाड़ी बिना किसान खेतों में बोवाई कैसे करेंगे, जिसके चलते हम बेचते हैं।